इस दिन बहने अपने भाई के दाएं हाथ पर राखी बांधकर उसके माथे पर तिलक करती है तथा उसकी दीर्घ
आयु की कामना करती है। इसके बदले भाई उसकी रक्षा का वचन देता है। भाई बहन एक दूसरे को मिठाई
खिलाते है।
वैसे तो सगे भाई बहन के अतिरिक्त अनेक भावनात्मक रिश्ते भी इस रक्षा बंधन से बंधे होते है
जो कि धर्म , जाती तथा देश की सीमाओँ से परे है। रक्षा बंधन हिन्दू तथा जैन लोगो का मुख्य त्यौहार माना
जाता है। रक्षा बंधन में राखी या रक्षा सूत्र का अधिक महत्व होता है। वैसे राखी कच्चे सूत्र से बनाई जाती है
परन्तु बदलते युग के अनुसार रंगीन कलावे , रेशमी धागे तथा सोने चांदी की भी बनाई जाने लगी है।
राखी बांधने की परंपरा काफी प्राचीन है। जिसके उदहारण हमें जैसे हमारे सभी धार्मिक अनुष्ठानो में रक्षा सूत्र बांधने की प्रथा है। इसी के साथ पंडित या आचार्य संस्कृत में श्लोक का उच्चारण करते है। इस मंत्र के अर्थ के अनुसार इसका सम्बंध राजा बलि से दिखाई पड़ता है। वंही भविष्य पुराण के अनुसार इन्द्राणी द्वारा निर्मित रक्षा सूत्र को देवगुरु बृहस्पति ने इंद्र के हाथों बांधते हुए स्वस्ति वाचन किया था जो इस प्रकार है --
'' येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल ।
तेन त्वामपि बन्धामि रक्षे मा चल मा चल । ।''
इस मन्त्र का अर्थ यह बताया गया है की '' जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था , उसी सूत्र से मै तुझे बांधता हूँ। हे रक्षे [ [राखी ] तुम अडिग रहना। इस मंत्र का राखी बांधते समय उच्चारण करना बहुत महत्वपूर्ण मन जाता है।
देश और सभ्यता के अनुसार रक्षा बंधन मनाने का रिवाज अलग अलग होता है , हमारे पडोसी नेपाल में इसे मनाने की प्रथा ही निराली है वहां पहाड़ी इलाको में ब्राह्मण तथा क्षत्रिय समुदाय में रक्षा बंधन गुरु और भागिनेय के हाथ से बंधा जाता है। परन्तु नेपाल की दक्षिण सीमा में रहने वाले भारतीय मूल के नेपाली भारतीयों की तरह बहन से राखी बंधवाते है।
रक्षा बंधन न केवल परंपरा से बंधा है बल्कि सामाजिक भी बन गया है जैसे सगे भाई बहन के अतिरिक्त अनेक भावनात्मक रिश्ते भी इस पर्व से जुड़े है। रक्षा बंधन आत्मीयता और स्नेह के बंधन से रिश्तों को मजबूती प्रदान करने का एक पर्व मन जाता है। हमारी परंपरा के अनुसार प्राचीन काल में गुरु शिष्य को रक्षा सूत्र बांधते थे तो शिष्य गुरु को।
जब की हमारी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जन जागरण करने हेतु श्री रविंद्रनाथ टैगोर जी ने बंग भांग का विरोध करते समय इसी रक्षा बंधन के त्यौहार को पारस्परिक भाईचारे तथा एकता का प्रतिक बना कर रक्षा बंधन त्यौहार का राजनीतिक उपयोग किया था।
रक्षा बंधन की कथा अमरनाथ यात्रा से भी जुडी है। जैसे विख्यात अमरनाथ की यात्रा गुरु पूर्णिमा से आरंभ होती है। और श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन अर्थात रक्षा बंधन के दिन समाप्तः होती है। कहा जाता है की इसी दिन हिमानी शिवलिंग भी अपने पूर्ण आकर को प्राप्त करता है।
ऐसा ही रक्षा बंधन हमारे सामजिक , पारम्परिक तथा पौराणिक कथाओं से जुड़ा है। परन्तु यह कब आरंभ हुआ और किसने इसका शुभ आरंभ किया इसका वर्णन कही नहीं मिलता।
[ सुबह 05:59 से सायंकाल 17:25 तक राखी बांधने का मुहरत शुभ है ]
0 टिप्पणियाँ