रोहन ने गरमा गरम चाय पीते हुए उसे किसी तरह गले से नीचे उतारते हुए चाय की प्याली नीचे रख दी। बील अदा कर वह दौड़ते हुए ही बस में चढ़ गया।  उस छोटे से बस स्टैंड पर अधिक समय बस नहीं रुकेगी ऐसी सूचना पहले ही यात्रियों को कंडक्टर ने दी थी। परन्तु रोहन जैसे अधिक समय बस में न बैठ सकने वाले यात्री ही नीचे उतरे थे। पांच- दस मिनिटों में ही यात्री बस में चढ़कर अपनी अपनी जगह बैठ गए।  रोहन को ऐसा लग रहा था कि यह बस कब शुरू होगी और अपनी गति थामे मुंबई की ओर दौड़ने लगेगी ,पहले ही ६-७ घंटों से यात्रियों को धक्कों के सहारे धीमी गति के कारण थकान महसूस हो रही थी।  मुंबई पहुँचने अभी भी और चार - पांच घंटों की प्रतीक्षा  करनी थी।  रोहन ने मन ही मन यह तय किया की जिंदगी में पुनः इतनी लम्बी यात्रा बस से नहीं करूँगा।
                 पंधरा मिनिट बीतने पर भी बस निकलती नहीं देखकर यात्रिओं में कानाफूसी होने लगी।  अभी ड्राइवर का पता नहीं था।  ड्राइवर तथा कंडक्टर भी चाय पीने  नीचे उतरे थे , वे अभी लौटे ही नहीं थे। उसी में बस आधी से ज्यादा ख़ाली थी।  बस में कम  यात्री है ,इस अवसर का लाभ ड्राइवर जानभूझकर उठा रहा है ,ऐसा दो तीन यात्रिओं से सुनते ही रोहन गुस्से से नीचे उतर गया।  बस स्टैंड के कैंटीन से ड्राइवर को बुलाने रोहन उस ओर गया। वहां भी ड्राइवर का पता नहीं था जब वह स्टैंड के पूछताछ कक्ष की ओर बढ़ा तो देखा ,ड्राइवर तथा कंडक्टर वहां चिंताग्रस्त मुद्रा में खड़े है।  तभी और दो तीन यात्री भी वहां पहुँच गए थे। तब ड्राइवर ने सब को देखकर अनचाहा समाचार सुनाया , तेज बरसात के कारण मुंबई जाने वाली सड़क पूरी तरह ख़राब हो गयी थी। अब बस कम से कम और ५-६ घंटों तक आगे नहीं जा सकती थी।
 राज्य परिवहन निगम के अधिकारीयों से पुनः जलगांव लौटने की अनुमति फ़ोन पर कंडक्टर ने प्राप्त की थी। वापस लौटने यात्रियों को पुनः टिकट लेने की आवश्यकता नहीं थी। वे उसी  बस से लौट सकते थे।  इतना सुनते ही दो तीन यात्री वहीँ उतरने लगे , कारण उनका गांव दो किलो मीटर पर ही था। सच तो अभी तीन चार स्टॉप के बाद उन्हें उतरना था। यहां से वे कच्ची सड़क से अपने गांव  जाने वाले थे।
             दुबारा ६-७ घंटों का सफर करने की रोहन की इच्छा नहीं थी।  जिस कार्य के लिए वह  जलगांव गया था वह कार्य खत्म हुआ था वहां लौटकर भी उसे किसी होटल में रात बीतानी पड़ती।  उसने विचार किया की यही उतरकर बस स्टैंड के पास वाले देहाती होटल में रूककर सड़क ठीक होने की प्रतीक्षा करे और वह झट से बस से नीचे उतर गया।  उसके पास सामान भी अधिक नहीं था।  एक छोटी सी सूटकेस और एक कैमेरा इतना ही उसका सामान था।
कुछ  ही पलों  में बस घूमकर पुनः जलगांव की ओर दौड़ने लगी।  उसी के  साथ ही बस से उतरे ग्रामीण यात्रिओं   ने रोहन की उदास मुद्रा देखी और एक ने हँसते हुए पूछा -
                                                      '' साहब ! आपको कहाँ जाना है ? ''
                                                      रोहन ने उस का उत्तर  देते  हुए बताया , '' मुंबई ''
' फिर इतना घबराते क्यों हो ? मज़ाकि लहजे में बोला  ' मुंबई यहां से करीब है।  तीन चार दिनों बाद सड़क ठीक होने के बाद जा सकोगे।  '
                                     ग्रामीण की इस बात पर रोहन को हंसी आ गयी। चार घंटों की यात्रा के लिए , यहां पर दो तीन दिन रहना पड़ेगा। इसकी उसे चिंता होने लगी , इस बात से उन ग्रामीणों को कोई परेशानी नहीं थी।
                                                ''  हमारा गांव  सुंदर है , हरियाली से सजाधजा।  आप देखेंगे तो खुश हो जाएंगे।  हमारे साथ चलिए ऐसा एक ग्रामीण ने कहा। ''
        रोहन ने पूछा  '' तुम्हारा गांव  कितनी दूर है ? '' '' बहुत दूर नहीं साहब।  यहाँ से  बस की सड़क से दो मील पैदल चलकर जाना पड़ेगा।, वहां बस स्टॉप है जिसके दाहिने ओर की सड़क से एक कोस जाते ही गांव  आ जायेगा।  परन्तु गांव  में पैदल या फिर बैलगाड़ी से ही पंहुंचा जा सकता है।
          बैलगाड़ी की सड़क से कीचड़ को रोंदते हुए पैदल जाना पड़ेगा ,इस कल्पना से रोहन को अटपटा लगा। उसने बातों का सिलसिला जारी रखते हुए पूछा - '' गांव की कितनी आबादी है ?''
         '' हमारा गांव बहुत छोटा है साब ! हजार लोगों की आबादी होगी।  परन्तु हम आपकी अच्छी व्यवस्था करेंगे। '' वे ग्रामीण कॅमेरावाले साहब को किसी भी तरह गांव  ले जाने की भावना से बातें कर रहे है , यह रोहन के ध्यान आया।  परन्तु आगे चलने की उसकी इच्छा न थी और  देहात में किसी अजनबी के घर रुकने की कल्पना भी रोहन को बर्दाश्त नहीं हो रही थी।
        '' मै  बस स्टैंड के पासवाले होटल में ही ठहरता हूँ।  लेकिन कल मै  तुम्हारा गांव देखने अवश्य आऊंगा , तुम्हारे फोटो भी खींचूंगा।  '' रोहन ने ग्रामीणों को समझाने का प्रयास किया।
          '' ठीक  है साहब ! हम आपके आभारी है , कल जरूर आईए।  वैसे मेरा नाम सखाराम है और इसका नाम महादु है।  हम पंचायत  के निकट वाले चबूतरे के पास ही रहते है।  आप आएंगे तो हम गरीबों को अच्छा लगेगा।
            रोहन ने कहा ' मै  जरूर आऊंगा। ' रोहन को रामराम कहते हुए वे ग्रामीण गांव की दिशा में चल पड़े।  वे आंखोंसे  ओझल होते ही रोहन बस स्टैंड के पासवाले होटल की ओर मूड गया , होटल मालिक जैसे रोहन की ही प्रतिक्षा में  है ऐसा उसे लगा।  बारिश के कारण बसेस बंद  होने से होटल मालिक को स्थानीय ग्राहक मिलना आज संभव न था।






 [   [ अगली कहानी का भाग प्रति सप्ताह पढ़ने मिलेगा।  शेष कहानी भाग २ में  क्रमश ]