गतांक से आगे.......
रोहन जैसे एकमेव शहरी ग्राहक को देखकर , उस होटल मालिक ने उसे एक कमरा देकर उसकी व्यवस्था कर दी। गंदी सुरतवाला तथा मैले कपडे पहने एक लड़का भी उसकी सेवा में दिया। देहाती होटल में असुविधायें होते हुए भी ,वहां आसरे के लिए जगह मिली। इसी को किस्मत मानकर ,रोहन ने उस कमरे में प्रवेश किया।
सवेरे उठा तब रातभर के आराम से रोहन एकदम चुस्त लग रहा था। यात्रा की थकान पूरी तरह खत्म हो चुकी थी। मुँह धोकर , लडके ने लायी मैली चाय की प्याली का उसने मजबूरन स्वीकार किया। परन्तु इतनी अच्छी चाय उसने आजतक नहीं पी थी। उसे आश्चर्य हुआ ,रोहन ने खुश होकर उस लडके को और एक प्याली चाय लाने कहा। चाय का स्वाद लेते हुए उसे अब चाय की प्याली मैली नहीं लग रही थी।
रोहन का नहाना होने के पाश्च्यात उस होटल मालिक ने खासकर भेजा हुआ नाश्ता कर वह बस स्टैंड की ओर गया। स्टैंड पर जगह - जगह पानी था। बारिश ने रात भर अपना अच्छा प्रदर्शन किया है इसका अनुमान रोहन ने लगाया। रात में जोरदार बारिश हुई इसका ग़हरी नींद के कारण उसे पता ही न चला। रोहन ने मुंबई जानेवाली बस की पूछताछ की तो पता चला की ' दुबारा रात की बारिश के कारण सड़क ओर भी ख़राब हो चुकी है। अब तक तो मुंबई जानेवाली बसे बंद है , और सड़क कब ठीक होगी इसकी भी उन्हें कोई जानकारी नहीं है। ' दो -तीन दिन ही क्या अब तो आठ दिन यहाँ रहना पड़ेगा। इस बात को रोहन जान चूका था। तब वह अपनी किस्मत पर ही चीढ़ गया। आठ दिनों तक इस गन्दी जगह कैसे बिताएंगे ? परन्तु उसे मजबूरन वंही रुकना पड़ रहा था।
रोहन ने मन में कुछ विचार किया और वह होटल की ओर मूड़ा। उसने होटल मालिक को सुचना देते हुए कहा - '' मै पासवाले गांव तक घूमकर आता हूँ। '' इतना कहकर वह गांव की ओर निकल पड़ा। दो मील बस की सड़क से पैदल जाना उसे सुखद लग रहा था वहीँ वातावरण भी सर्द था। बारिश के कारण सड़क साफ़ धूल गई थी। पिछ्ले दिन सखाराम के द्वारा बताय हुए रास्ते से गांव में जाने का रोहन ने निश्चय किया था। गांव के पासवाले बस स्टॉप के निकटवाली दाहिने ओर की सड़क पर चल पड़ा। किन्तु बैलगाड़ी का कीचड़ से लथपथ रास्ता देख उसके शरीर पर रोंगटें खड़े हो गए। लेकिन वापस लौट कर करें क्या ? यह प्रश्न भी उसके आँखों के सामने था। दुबारा बस स्टैंड और वही गन्दा होटल। उसने कुछ साहस कर कदम आगे बढ़ाने का ठाना कैमेरा गले में लटकाकर , जुते हाथों में लिए कीचड़ को रौदते हुए वह निकल पड़ा। दो तीन ग्रामीणों को कीचड़ रौंदते हुए उसने देखा तो उसे अच्छा लगा। अपने जैसी ही उनकी भी स्थिति है , यह देख उसने स्वयं ही अपना परिचय देते हुए सखाराम के घर का पता पूछा। ग्रामीण भी खुश हुए उनको भी गांव तक एक नया हमसफ़र मिल गया था। उनके बीच बातों का सिलसिला चलता गया गांव में कब पहुंचे इसका पता ही न चला ,उन ग्रामिणो ने सखाराम के घर पहुंचाया।
कल का शहरी यात्री वास्तव में दरवाजे पर आया देख सखाराम खुश हुआ। उसके परिवारवालों ने भी रोहन का अच्छा स्वागत किया। सखाराम तथा उसके परिवारवाले रोहन को भोजन करने का आग्रह करने लगे , जिसे हाँ - ना करते हुए रोहन ने मान्य किया। भोजन तैयार होने तक रोहन को गांव दिखाने सखाराम साथ ले गया। सखाराम ने अन्य गांववालों से रोहन का परिचय करा दिया। रोहन ने उन देहातियो के , सखाराम के तथा उसके परिवारवालों के अनेक फोटो खींचे। फोटोओं की प्रतियां मुंबई पहुँच कर भिजवाने का आश्वासन दिया। रोहन सबसे विदा लेकर वापस निकल पड़ा।
इस समय शाम के पांच बज रहे थे। दोपहर में सखाराम के घर का स्वादिष्ट भोजन होने के पश्च्यात गांव में अकेले ही और एक चक्कर लगाकर वहाँ के निसर्ग के साथ कुछ समय बिताने की ठान कर वह निकल पड़ा।
सचमुच वह गांव बहुत ही सुन्दर था। पर्वतों के दामनतले बसे उस गांव को जैसे सृष्टी ने अपने बाहों में सिमट रखा था। सृष्टी की कृपा से पानी की जरा भी कमी नहीं लग रही थी। गांव के बाहर की छोटी सी नदी , मूसलाधार बारिश के कारण उफान से बलखाते बह रही थी। आसपास की भी भूमि जैसे नदी ने अपने में सिमट लिया था। बादल अब साफ हो चुके थे। अब दुबारा बारिश नहीं होगी ऐसा तो लग रहा था। वातावरण में कमाल की सर्दी थी स्वैटर होता तो अच्छा होता ,ऐसा रोहन को एक क्षण लगा और वह अकेले में ही हँस पड़ा। मुंबई जैसे शहर में रहने वाले युवक को जिंदगी में कभी स्वैटर पहनने की जरुरत पड़ने की कल्पना भी नहीं आ सकती थी। बहुत देर तक घूमकर भी उसका समाधान नहीं हो रहा था। अँधेरा होने में कुछ समय था। और घूमने मिलेगा इस कारण वह खुश था। गांव के बाहर की हरियाली ने और सृष्टि की सुंदरता ने उसका मन मोह लिया था। कीचड़ को रौंदते हुए यहां आने की उसे ख़ुशी हो रही थी।
रोहन ने सृष्टि के जितने फोटो लेना मुमकिन था उतने फोटो खिंच लिए। कैमेरा का रोल शायद खत्म होने आया होगा, इस अनुमान से उसने कैमेरा की ओर देखा। अभी चार -पांच फोटो खिंच सकता था। इस तरह के सुन्दर दॄश्य यहां मिलेंगे , इसकी कल्पना न होने के कारण उसने दूसरा रोल साथ नहीं लिया था। उसने कल दो रोल लेकर आने का तय किया।
पहाड़ों और खाईयो से जकड़े उस क्षेत्र में अकेले घूमना खतरे से खाली नहीं था। गलती से भी पैर फिसल कर खाई में गिरने की संभावना थी। रोहन घूमते हुए बहुत दूर तक निकल गया था। अचानक सामने एक पुराना मंदिर देख , उसकी जिज्ञांसा बड़ी। वहां तक एक चक्कर लगाकर लौटने के विचार से वह आगे बढ़ा। जैसे वह आगे आगे बढ़ रहा था तो अचानक उसकी नजर बायीं ओरे गई। वह दृश्य देख रोहन अचंभित हो गया।
मखमल जैसी हरियाली पर खड़ी होकर एक सौंदर्यवती सृष्टि का नजारा देखते हुए चित्र बनाने में मशगूल थी। ऐसे निर्जन स्थानपर , गांव से इतनी दूर आकर अकेली ही चित्र उतारती उस युवती को देख कर , रोहन के कदम अनायस ही उस ओर बढे।
चित्र उतारने में मग्न ईश्वर की उस कलाकृति को देख रोहन ने कॅमेरे से उसका एक फोटो खिंचा। फ़्लैश की लाइट के कारण उस युवती ने रोहन की ओर देखा और वह घबरा गई। रोहन और निकट पहुंचा और उसे घबराने की जरुरत नहीं कह कर रोहन ने अपना परिचय विस्तार से दिया और वह इस गांव में किस तरह पहुंचा यह बताया। जब गांववालों के आग्रह पर वह पहुंचा है यह जानते ही उस युवती को धीरज आया।
उसे रोहन ने पूछा - '' ऐसे निर्जन स्थान पर अकेली ही आकर चित्र उतारने में आपको भय नहीं लगता ? उसके इस प्रश्न पर हँसते हुए उस युवती ने व्यंग कस्ते हुए कहा - '' इस गांव के सरपंच की मै भतीजी हूँ और हमारे गांव में तथा आसपास के गांव में जिसका भय लगे ऐसा कोई प्राणी नहीं है। '' ' वैसा नहीं लेकिन इतनी दूर ......... ' रोहन के इस प्रश्न को बीच में ही काटते हुए उसने कहा - 'अँधेरा होने से पहले ही मै घर पहुंचती हूँ और हमेशा इस क्षेत्र में आते रहने से , मै यहां से अच्छी तरह परिचित हूँ। '
क्या मै आपका चित्र देख सकता हूँ ? रोहन के इस प्रश्न पर वह हंस पड़ी। बिना कुछ बोले वह , रोहन को चित्र के पास ले गई। उसका वह चित्र देखकर रोहन हैरान हो गया।
'' इतना सुन्दर नजारा यहां रहते हुए भी तुम अच्छासा लैंडस्केप उतारने के बजाय मंदिर का चित्र उतार रही हो ? रोहन ने कहा -'' इसका मुझे आश्चर्य हो रहा है।
'' रोहनजी आसपास के नजारों के बहुत से चित्र मैंने उतारे है। इस मंदिर ने अनजाने ही मंदिर का चित्र उतारने ललकारा है। '' उस युवती की बात रोहन समझ गया। तब उसने कहा कलाकार को क्या करना चाहिए इसकी प्रेरणा अपने आप मिलती है और सच तो इस मंदिर करीब से देखने तो मई यहां तक आया हूँ।
खैर , कारण कुछ भी हो मंदिर और सृष्टि के कारण ही हमारी मुलाक़ात हुई है उस युवती ने कहा तो रोहन उसकी ओरे देखता का देखता रह गया। उस युवती की बातें जारी थी वह बोल रही थी -''
' मुझे इस मंदिर का चित्र उतारने की इच्छा होना और तुम्हे मंदिर निकट से देखने की लालसा होना इसे भगवान की ही कृपा समझना चाहिए। ' उसकी बातों से रोहन को अच्छा लग रहा था और थोड़ा आश्चर्य भी हुआ। परन्तु उस युवती की बातों का अर्थ वह जान चूका था। रोहन ने कहा - '' मुझे बहुत दूर जाना है , अँधेरा होने से पहले नहीं निकला तो सड़क मिलनी मुश्किल होगी। साथ ही आपके गांव का कीचड़ मुझे होटल तक जल्द पहुँचने नहीं देगा। '
रोहन ने एक साँस लेते हुए कहा ' आपका मंदिर देखना रह गया ' उस युवती के ऐसा कहते ही रोहन झट से पूछने वाला था कि ' कल तुम मुझे मंदिर बताओगी ?' लेकिन उसकी यह बात उसके मन में ही रह गई। एकदम इस तरह पूछ्ना उसे ठीक नहीं लगा।
उसके मन की बात को शायद उस युवती ने जैसे भांप लिया था वह बोली - ' कल चार बजे आपको यहाँ आना संभव हुआ तो मै आपको मंदिर जरूर दिखाऊँगी ' युवती ने ऐसा कहते ही रोहन हैरान हो गया। इस बात से रोहन का टेलिपथी पर विश्वास हो चूका था।
रोहन ने तब कहा - ' मेरे मन की बात ही आपने कही। कल चार बजे यहां मै जरूर आऊंगा। ' इतना कहकर वह जाने के लिए मुड़ा।
उस चित्रकार सुन्दर युवती को ' घर तक छोड़ दूँगा ' ऐसा कहने की इच्छा होते हुए भी , वह कुछ नहीं बोल पाया। गांव अजनबी उसीमे देहाती लोग इसके आलावा कम आबादी वाले उस गांव में एक युवती के साथ एक अजनबी युवक का जाना ठीक नहीं होगा। यह सोंचकर रोहन मौन रहा।
अँधेरा होने से पहले बस की सड़क तक पहुंचने के लिए वह जल्दी - जल्दी अपने कदम उठा रहा था। खूबसूरत सुन्दर युवती के दर्शन से तथा सृष्टि की महिमा से उसका मन खुश था। वह बहुत से फोटो खींच चूका था। कल कैसे भी दो रोल लाने का उसने अपने मन में तय कर लिया। जब वह होटल में पहुंचा तो अँधेरा पूरी तरह फ़ैल चूका था। यहाँ इस अनजान क्षेत्र में रहने का अब दुःख भी नहीं हो रहा था , उल्टे उसका मन बहुत प्रसन्न था।
खाना खाकर जब उसने बिस्तर पर अपना देह टिकाया इतनी थकान के बावजूद तथा उस युवती के विचारों से रोहन से नींद कोसों दूर थी। बार - बार उस युवती का रूप और उसकी बातें रोहन की आँखों के सन्मुख नाच रहे थे। रोहन को इतनी देर उस युवती के साथ बिताने ने पर भी उसने उसका नाम या अन्य जानकारी नहीं पूछी थी , इस बात का उसे अफ़सोस हो रहा था। रोहन ने तो अपना परिचय दिया था , तब उस युवती ने केवल यहां के सरपंच की भतीजी होने की बात कही थी।
मैंने उसका नाम कैसे नहीं पूछा इसका रोहन को मलाल हो रहा था। इतनी खूबसूरत युवती का क्या नाम होगा ? उसकी भी कल्पना करने में असमर्थ हो रहा था। खैर , कल उसकी मुलाकात होते ही सबसे पहले उसका नाम जानने का रोहन ने तय कर रखा। इसके साथ ही उसकी संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने का भी उसने निर्धार कर लिया।
उस अज्ञात युवती के विषय में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करनी चाहिए ऐसा रोहन को लग रहा था। फोटोग्राफी के बहाने जिंदगी में हमेशा ही युवतियों से परिचय होता था परन्तु इतने विचार किसी अन्य युवती के बारे में उसने कभी नहीं किये थे।
[ अगली कहानी भाग - 3 मे ]
रोहन का नहाना होने के पाश्च्यात उस होटल मालिक ने खासकर भेजा हुआ नाश्ता कर वह बस स्टैंड की ओर गया। स्टैंड पर जगह - जगह पानी था। बारिश ने रात भर अपना अच्छा प्रदर्शन किया है इसका अनुमान रोहन ने लगाया। रात में जोरदार बारिश हुई इसका ग़हरी नींद के कारण उसे पता ही न चला। रोहन ने मुंबई जानेवाली बस की पूछताछ की तो पता चला की ' दुबारा रात की बारिश के कारण सड़क ओर भी ख़राब हो चुकी है। अब तक तो मुंबई जानेवाली बसे बंद है , और सड़क कब ठीक होगी इसकी भी उन्हें कोई जानकारी नहीं है। ' दो -तीन दिन ही क्या अब तो आठ दिन यहाँ रहना पड़ेगा। इस बात को रोहन जान चूका था। तब वह अपनी किस्मत पर ही चीढ़ गया। आठ दिनों तक इस गन्दी जगह कैसे बिताएंगे ? परन्तु उसे मजबूरन वंही रुकना पड़ रहा था।
रोहन ने मन में कुछ विचार किया और वह होटल की ओर मूड़ा। उसने होटल मालिक को सुचना देते हुए कहा - '' मै पासवाले गांव तक घूमकर आता हूँ। '' इतना कहकर वह गांव की ओर निकल पड़ा। दो मील बस की सड़क से पैदल जाना उसे सुखद लग रहा था वहीँ वातावरण भी सर्द था। बारिश के कारण सड़क साफ़ धूल गई थी। पिछ्ले दिन सखाराम के द्वारा बताय हुए रास्ते से गांव में जाने का रोहन ने निश्चय किया था। गांव के पासवाले बस स्टॉप के निकटवाली दाहिने ओर की सड़क पर चल पड़ा। किन्तु बैलगाड़ी का कीचड़ से लथपथ रास्ता देख उसके शरीर पर रोंगटें खड़े हो गए। लेकिन वापस लौट कर करें क्या ? यह प्रश्न भी उसके आँखों के सामने था। दुबारा बस स्टैंड और वही गन्दा होटल। उसने कुछ साहस कर कदम आगे बढ़ाने का ठाना कैमेरा गले में लटकाकर , जुते हाथों में लिए कीचड़ को रौदते हुए वह निकल पड़ा। दो तीन ग्रामीणों को कीचड़ रौंदते हुए उसने देखा तो उसे अच्छा लगा। अपने जैसी ही उनकी भी स्थिति है , यह देख उसने स्वयं ही अपना परिचय देते हुए सखाराम के घर का पता पूछा। ग्रामीण भी खुश हुए उनको भी गांव तक एक नया हमसफ़र मिल गया था। उनके बीच बातों का सिलसिला चलता गया गांव में कब पहुंचे इसका पता ही न चला ,उन ग्रामिणो ने सखाराम के घर पहुंचाया।
कल का शहरी यात्री वास्तव में दरवाजे पर आया देख सखाराम खुश हुआ। उसके परिवारवालों ने भी रोहन का अच्छा स्वागत किया। सखाराम तथा उसके परिवारवाले रोहन को भोजन करने का आग्रह करने लगे , जिसे हाँ - ना करते हुए रोहन ने मान्य किया। भोजन तैयार होने तक रोहन को गांव दिखाने सखाराम साथ ले गया। सखाराम ने अन्य गांववालों से रोहन का परिचय करा दिया। रोहन ने उन देहातियो के , सखाराम के तथा उसके परिवारवालों के अनेक फोटो खींचे। फोटोओं की प्रतियां मुंबई पहुँच कर भिजवाने का आश्वासन दिया। रोहन सबसे विदा लेकर वापस निकल पड़ा।
इस समय शाम के पांच बज रहे थे। दोपहर में सखाराम के घर का स्वादिष्ट भोजन होने के पश्च्यात गांव में अकेले ही और एक चक्कर लगाकर वहाँ के निसर्ग के साथ कुछ समय बिताने की ठान कर वह निकल पड़ा।
सचमुच वह गांव बहुत ही सुन्दर था। पर्वतों के दामनतले बसे उस गांव को जैसे सृष्टी ने अपने बाहों में सिमट रखा था। सृष्टी की कृपा से पानी की जरा भी कमी नहीं लग रही थी। गांव के बाहर की छोटी सी नदी , मूसलाधार बारिश के कारण उफान से बलखाते बह रही थी। आसपास की भी भूमि जैसे नदी ने अपने में सिमट लिया था। बादल अब साफ हो चुके थे। अब दुबारा बारिश नहीं होगी ऐसा तो लग रहा था। वातावरण में कमाल की सर्दी थी स्वैटर होता तो अच्छा होता ,ऐसा रोहन को एक क्षण लगा और वह अकेले में ही हँस पड़ा। मुंबई जैसे शहर में रहने वाले युवक को जिंदगी में कभी स्वैटर पहनने की जरुरत पड़ने की कल्पना भी नहीं आ सकती थी। बहुत देर तक घूमकर भी उसका समाधान नहीं हो रहा था। अँधेरा होने में कुछ समय था। और घूमने मिलेगा इस कारण वह खुश था। गांव के बाहर की हरियाली ने और सृष्टि की सुंदरता ने उसका मन मोह लिया था। कीचड़ को रौंदते हुए यहां आने की उसे ख़ुशी हो रही थी।
रोहन ने सृष्टि के जितने फोटो लेना मुमकिन था उतने फोटो खिंच लिए। कैमेरा का रोल शायद खत्म होने आया होगा, इस अनुमान से उसने कैमेरा की ओर देखा। अभी चार -पांच फोटो खिंच सकता था। इस तरह के सुन्दर दॄश्य यहां मिलेंगे , इसकी कल्पना न होने के कारण उसने दूसरा रोल साथ नहीं लिया था। उसने कल दो रोल लेकर आने का तय किया।
पहाड़ों और खाईयो से जकड़े उस क्षेत्र में अकेले घूमना खतरे से खाली नहीं था। गलती से भी पैर फिसल कर खाई में गिरने की संभावना थी। रोहन घूमते हुए बहुत दूर तक निकल गया था। अचानक सामने एक पुराना मंदिर देख , उसकी जिज्ञांसा बड़ी। वहां तक एक चक्कर लगाकर लौटने के विचार से वह आगे बढ़ा। जैसे वह आगे आगे बढ़ रहा था तो अचानक उसकी नजर बायीं ओरे गई। वह दृश्य देख रोहन अचंभित हो गया।
मखमल जैसी हरियाली पर खड़ी होकर एक सौंदर्यवती सृष्टि का नजारा देखते हुए चित्र बनाने में मशगूल थी। ऐसे निर्जन स्थानपर , गांव से इतनी दूर आकर अकेली ही चित्र उतारती उस युवती को देख कर , रोहन के कदम अनायस ही उस ओर बढे।
चित्र उतारने में मग्न ईश्वर की उस कलाकृति को देख रोहन ने कॅमेरे से उसका एक फोटो खिंचा। फ़्लैश की लाइट के कारण उस युवती ने रोहन की ओर देखा और वह घबरा गई। रोहन और निकट पहुंचा और उसे घबराने की जरुरत नहीं कह कर रोहन ने अपना परिचय विस्तार से दिया और वह इस गांव में किस तरह पहुंचा यह बताया। जब गांववालों के आग्रह पर वह पहुंचा है यह जानते ही उस युवती को धीरज आया।
उसे रोहन ने पूछा - '' ऐसे निर्जन स्थान पर अकेली ही आकर चित्र उतारने में आपको भय नहीं लगता ? उसके इस प्रश्न पर हँसते हुए उस युवती ने व्यंग कस्ते हुए कहा - '' इस गांव के सरपंच की मै भतीजी हूँ और हमारे गांव में तथा आसपास के गांव में जिसका भय लगे ऐसा कोई प्राणी नहीं है। '' ' वैसा नहीं लेकिन इतनी दूर ......... ' रोहन के इस प्रश्न को बीच में ही काटते हुए उसने कहा - 'अँधेरा होने से पहले ही मै घर पहुंचती हूँ और हमेशा इस क्षेत्र में आते रहने से , मै यहां से अच्छी तरह परिचित हूँ। '
क्या मै आपका चित्र देख सकता हूँ ? रोहन के इस प्रश्न पर वह हंस पड़ी। बिना कुछ बोले वह , रोहन को चित्र के पास ले गई। उसका वह चित्र देखकर रोहन हैरान हो गया।
'' इतना सुन्दर नजारा यहां रहते हुए भी तुम अच्छासा लैंडस्केप उतारने के बजाय मंदिर का चित्र उतार रही हो ? रोहन ने कहा -'' इसका मुझे आश्चर्य हो रहा है।
'' रोहनजी आसपास के नजारों के बहुत से चित्र मैंने उतारे है। इस मंदिर ने अनजाने ही मंदिर का चित्र उतारने ललकारा है। '' उस युवती की बात रोहन समझ गया। तब उसने कहा कलाकार को क्या करना चाहिए इसकी प्रेरणा अपने आप मिलती है और सच तो इस मंदिर करीब से देखने तो मई यहां तक आया हूँ।
खैर , कारण कुछ भी हो मंदिर और सृष्टि के कारण ही हमारी मुलाक़ात हुई है उस युवती ने कहा तो रोहन उसकी ओरे देखता का देखता रह गया। उस युवती की बातें जारी थी वह बोल रही थी -''
' मुझे इस मंदिर का चित्र उतारने की इच्छा होना और तुम्हे मंदिर निकट से देखने की लालसा होना इसे भगवान की ही कृपा समझना चाहिए। ' उसकी बातों से रोहन को अच्छा लग रहा था और थोड़ा आश्चर्य भी हुआ। परन्तु उस युवती की बातों का अर्थ वह जान चूका था। रोहन ने कहा - '' मुझे बहुत दूर जाना है , अँधेरा होने से पहले नहीं निकला तो सड़क मिलनी मुश्किल होगी। साथ ही आपके गांव का कीचड़ मुझे होटल तक जल्द पहुँचने नहीं देगा। '
रोहन ने एक साँस लेते हुए कहा ' आपका मंदिर देखना रह गया ' उस युवती के ऐसा कहते ही रोहन झट से पूछने वाला था कि ' कल तुम मुझे मंदिर बताओगी ?' लेकिन उसकी यह बात उसके मन में ही रह गई। एकदम इस तरह पूछ्ना उसे ठीक नहीं लगा।
उसके मन की बात को शायद उस युवती ने जैसे भांप लिया था वह बोली - ' कल चार बजे आपको यहाँ आना संभव हुआ तो मै आपको मंदिर जरूर दिखाऊँगी ' युवती ने ऐसा कहते ही रोहन हैरान हो गया। इस बात से रोहन का टेलिपथी पर विश्वास हो चूका था।
रोहन ने तब कहा - ' मेरे मन की बात ही आपने कही। कल चार बजे यहां मै जरूर आऊंगा। ' इतना कहकर वह जाने के लिए मुड़ा।
उस चित्रकार सुन्दर युवती को ' घर तक छोड़ दूँगा ' ऐसा कहने की इच्छा होते हुए भी , वह कुछ नहीं बोल पाया। गांव अजनबी उसीमे देहाती लोग इसके आलावा कम आबादी वाले उस गांव में एक युवती के साथ एक अजनबी युवक का जाना ठीक नहीं होगा। यह सोंचकर रोहन मौन रहा।
अँधेरा होने से पहले बस की सड़क तक पहुंचने के लिए वह जल्दी - जल्दी अपने कदम उठा रहा था। खूबसूरत सुन्दर युवती के दर्शन से तथा सृष्टि की महिमा से उसका मन खुश था। वह बहुत से फोटो खींच चूका था। कल कैसे भी दो रोल लाने का उसने अपने मन में तय कर लिया। जब वह होटल में पहुंचा तो अँधेरा पूरी तरह फ़ैल चूका था। यहाँ इस अनजान क्षेत्र में रहने का अब दुःख भी नहीं हो रहा था , उल्टे उसका मन बहुत प्रसन्न था।
खाना खाकर जब उसने बिस्तर पर अपना देह टिकाया इतनी थकान के बावजूद तथा उस युवती के विचारों से रोहन से नींद कोसों दूर थी। बार - बार उस युवती का रूप और उसकी बातें रोहन की आँखों के सन्मुख नाच रहे थे। रोहन को इतनी देर उस युवती के साथ बिताने ने पर भी उसने उसका नाम या अन्य जानकारी नहीं पूछी थी , इस बात का उसे अफ़सोस हो रहा था। रोहन ने तो अपना परिचय दिया था , तब उस युवती ने केवल यहां के सरपंच की भतीजी होने की बात कही थी।
मैंने उसका नाम कैसे नहीं पूछा इसका रोहन को मलाल हो रहा था। इतनी खूबसूरत युवती का क्या नाम होगा ? उसकी भी कल्पना करने में असमर्थ हो रहा था। खैर , कल उसकी मुलाकात होते ही सबसे पहले उसका नाम जानने का रोहन ने तय कर रखा। इसके साथ ही उसकी संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने का भी उसने निर्धार कर लिया।
उस अज्ञात युवती के विषय में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करनी चाहिए ऐसा रोहन को लग रहा था। फोटोग्राफी के बहाने जिंदगी में हमेशा ही युवतियों से परिचय होता था परन्तु इतने विचार किसी अन्य युवती के बारे में उसने कभी नहीं किये थे।
[ अगली कहानी भाग - 3 मे ]
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