भ्रमण
[ गतांकसे -- धीरज को एक समाधान यह था की अध्यापन के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में रहने का अवसर उसे मिला था। यूनिवर्सिटी में न सही स्कूल में वह विद्यार्थिओं को अंग्रेजी पढ़ा सकता था। उसके पढ़ाने के ढंग पर विद्यर्थी खुश थे। उसके प्रिंसिपल और सह अद्यापक भी उसके शांत और सोजन्यशील व्यवहार से उससे प्रसन्न थे। बम्बई जैसे बड़े शहर को छोड़ इस छोटे से गांव के शांत वातावरण में सीमित वेतन में गुजारा करना ज्यादा लाभदायक था। ]
अब आगे ---
आज पढ़ाने में उसका मन ध्यान नहीं था। वह सुस्त था और उसे नींद भी आ रही थी। न जाने क्यों पर आज जल्दी घर जाने का उसका मूड था। अचानक उसके घर के पडोसी लडके को क्लास रूम के बाहर खड़ा देख कर धीरज बाहर आया। लडके ने उसे जो कहा उससे उसका मन धड़कने लगा। माँ ने उसे जल्दी घर बुलाया था। अचानक इस बुलाने का कारण भी लडके को नहीं बताया था। शायद माँ या मधु की तबीयत ख़राब हो , इस आशंका से प्रिंसिपल साहब से अनुमति लेकर वह लडके के साथ घर आया। माँ और बहन को हँसता देख उसके जान में जान आई। '' माँ स्कूल से इस तरह घर बुलाने का कारण क्या है ? मै तो पहले डर गया था मुझे यूँ ही डरा कर घर बुलाने से तुम लोगों को क्या मिला ? '' उसने नाराजी से पूछा। ''
'' भैया हमें कुछ नहीं मिला। मिला तो तुम्हे ही है ऐसा हँसते -हँसते कह कर मधु ने धीरज के हाथों में एक पत्र थमा दिया। '' यह क्या है ? '' कहते हुए अधीरता सेधीराज ने पत्र पढ़ा। उसके हाथ कांप रहे थे , मगर वह कम्पन डर से नहीं ख़ुशी के कारण हो रहा था। पत्र पढ़ते ही ख़ुशी के मारे उसने मधु को ऊपर उठा लिया और उसके हाथ पकड़कर बच्चे की तरह उछलना नाचना शुरू किया। माँ की ख़ुशी की भी सीमा नहीं थी। बात ही कुछ ऐसी थी।
जर्मनी में आयोजित कथा प्रतियोगिता में उसकी कथा चुन ली गयी थी और उसे प्रथम पुरस्कार मिला था। दस हजार जर्मन मार्क का प्रथम पुरस्कार लेन के लिए उसे जर्मनी बुलाया था और जर्मनी आने जाने का खर्च भी जर्मन सरकार ही करने वाली थी। वौइस् ऑफ़ जर्मनी की ओर से देश विदेश की अनेक भाषाओँ में प्रतियोगिता के लिए कथाएं मंगवाई गई थी। विज्ञापन देख धीरज ने भी कथा भेजी थी और वह सब कुछ भूल भी गया था। आज छह महीने बाद अचानक ऐसा कोई पत्र और वह भी विदेश से आएगा ऐसी कल्पना भी उसने नहीं की थी। आश्चर्य की बात तो यह थी की , वह पत्र जर्मनी से हिंदी भाषा में टाइप होकर आया था।
धीरज की कहानी चुनी जाने की खबर सरे गांव में फ़ैल गई। अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता होने की वजह से सारे समाचार पत्रों में भी यह खबर आई थी।
दूसरे दिन स्कूल में पहुँचते ही विद्यार्थियों ने और साथी आध्यापको ने उसे घेर लिया। बहुतों के हाथों में आज का समाचार पत्र था। बात सबको मालूम हो गई थी। स्कूल में आज पढाई होनेवाली नहीं थी। अध्यापक और विद्यार्थी ' हॉलिडे के ' मूड में थे। हर एक ने धीरज को उसकी कथा के और जर्मनी के बारे में पूछना शुरू किया। प्रिंसिपल साहब ने उसे बुलाकर बधाई दी। '' मुझे और सारे स्कूल को भी आपके ऊपर गर्व है। " कहते हुए प्रिंसिपल साहब ने उसे जर्मनी जाने के लिए पूर्ण रूप से सहायता और वह चाहे जितने दिनो की छुट्टी मंजूर करने का आश्वासन दिया।
आजकल धीरज को मिलने गांव के छोटे बड़े बहुत से लोग आने लगे थे। उसके साथ जिनकी जान पहचान नहीं थी ऐसे लोग भी उससे आकर इस तरह मिलते और बातें करते थे जैसे उनकी धीरज से बहुत पुरानी पहचान हो। देखते ही देखते एक सामान्य शिक्षक को लोगों ने वी . आय. पी. बना दिया था। समाज के अमीर , गरीब , जवान -बूढ़े हर वर्ग के लोग उसे क्यों मिलने आते है यह धीरज समज चूका था।
वह विदेश को जाने वाला था इसीलिए एकदम उसे प्रतिष्ठित व्यक्ति लोगों ने बना दिया था। आज तक उसने बहुत सी कथाएं लिखी थी। मासिक पत्रिकाओं और अखबारों में छपवाने के लिए भेजी थी। मगर आज तक किसी ने उसकी रचना छापने का कष्ट नहीं किया। इतना ही नहीं उसका अप्रकाशित साहित्य उसे लौटाने का सौजन्य भी उनमे से किसी ने नहीं दिखाया था। उसके पत्रों का जवाब तक देने की सभ्यता किसी ने नहीं दिखाई थी। उसी धीरज को समाज ने आज एकदम लेखक और साहित्यकार कहना शुरू कर दिया था। देश विदेश से आई हुई अलग अलग 600 कथाओं में से उसकी कथा प्रथम पुरस्कार के लिए जर्मनी में चुन ली गई थी। देश में न सही विदेश में तो अपनी रचना को सराहा गया इस बात से धीरज संतुष्ट था।
जैसे जैसे प्रयाण के दिन नजदीक आये धीरज का दिल धड़कने लगा। जर्मनी कैसा देश होगा ? हवाई जहाज का सफर कैसा होगा पूरी विदेश यात्रा कैसी रहेगी ? इन प्रश्नों से उसकी रातों की नींद उड़ा दी थी। अड़ोस पड़ोस में और मित्र परिवारों में धीरज के विदेश यात्रा की चर्चा भी जोरों में थी।
'' जर्मन सुंदरियों के साथ रहकर कहीं अपने आपको खो न देना तुम्हारी माँ और बहन की जिम्मेदारी तुम पर है। " पड़ोस की एक महिला ने अपना स्त्री सुलभ उपदेश दिया।
----- अजित कुमार
कहानी का अगला और अंतिम भाग -३ अगले सप्ताह में .................
[ गतांकसे -- धीरज को एक समाधान यह था की अध्यापन के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में रहने का अवसर उसे मिला था। यूनिवर्सिटी में न सही स्कूल में वह विद्यार्थिओं को अंग्रेजी पढ़ा सकता था। उसके पढ़ाने के ढंग पर विद्यर्थी खुश थे। उसके प्रिंसिपल और सह अद्यापक भी उसके शांत और सोजन्यशील व्यवहार से उससे प्रसन्न थे। बम्बई जैसे बड़े शहर को छोड़ इस छोटे से गांव के शांत वातावरण में सीमित वेतन में गुजारा करना ज्यादा लाभदायक था। ]
अब आगे ---
आज पढ़ाने में उसका मन ध्यान नहीं था। वह सुस्त था और उसे नींद भी आ रही थी। न जाने क्यों पर आज जल्दी घर जाने का उसका मूड था। अचानक उसके घर के पडोसी लडके को क्लास रूम के बाहर खड़ा देख कर धीरज बाहर आया। लडके ने उसे जो कहा उससे उसका मन धड़कने लगा। माँ ने उसे जल्दी घर बुलाया था। अचानक इस बुलाने का कारण भी लडके को नहीं बताया था। शायद माँ या मधु की तबीयत ख़राब हो , इस आशंका से प्रिंसिपल साहब से अनुमति लेकर वह लडके के साथ घर आया। माँ और बहन को हँसता देख उसके जान में जान आई। '' माँ स्कूल से इस तरह घर बुलाने का कारण क्या है ? मै तो पहले डर गया था मुझे यूँ ही डरा कर घर बुलाने से तुम लोगों को क्या मिला ? '' उसने नाराजी से पूछा। ''
'' भैया हमें कुछ नहीं मिला। मिला तो तुम्हे ही है ऐसा हँसते -हँसते कह कर मधु ने धीरज के हाथों में एक पत्र थमा दिया। '' यह क्या है ? '' कहते हुए अधीरता सेधीराज ने पत्र पढ़ा। उसके हाथ कांप रहे थे , मगर वह कम्पन डर से नहीं ख़ुशी के कारण हो रहा था। पत्र पढ़ते ही ख़ुशी के मारे उसने मधु को ऊपर उठा लिया और उसके हाथ पकड़कर बच्चे की तरह उछलना नाचना शुरू किया। माँ की ख़ुशी की भी सीमा नहीं थी। बात ही कुछ ऐसी थी।
जर्मनी में आयोजित कथा प्रतियोगिता में उसकी कथा चुन ली गयी थी और उसे प्रथम पुरस्कार मिला था। दस हजार जर्मन मार्क का प्रथम पुरस्कार लेन के लिए उसे जर्मनी बुलाया था और जर्मनी आने जाने का खर्च भी जर्मन सरकार ही करने वाली थी। वौइस् ऑफ़ जर्मनी की ओर से देश विदेश की अनेक भाषाओँ में प्रतियोगिता के लिए कथाएं मंगवाई गई थी। विज्ञापन देख धीरज ने भी कथा भेजी थी और वह सब कुछ भूल भी गया था। आज छह महीने बाद अचानक ऐसा कोई पत्र और वह भी विदेश से आएगा ऐसी कल्पना भी उसने नहीं की थी। आश्चर्य की बात तो यह थी की , वह पत्र जर्मनी से हिंदी भाषा में टाइप होकर आया था।
धीरज की कहानी चुनी जाने की खबर सरे गांव में फ़ैल गई। अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता होने की वजह से सारे समाचार पत्रों में भी यह खबर आई थी।
दूसरे दिन स्कूल में पहुँचते ही विद्यार्थियों ने और साथी आध्यापको ने उसे घेर लिया। बहुतों के हाथों में आज का समाचार पत्र था। बात सबको मालूम हो गई थी। स्कूल में आज पढाई होनेवाली नहीं थी। अध्यापक और विद्यार्थी ' हॉलिडे के ' मूड में थे। हर एक ने धीरज को उसकी कथा के और जर्मनी के बारे में पूछना शुरू किया। प्रिंसिपल साहब ने उसे बुलाकर बधाई दी। '' मुझे और सारे स्कूल को भी आपके ऊपर गर्व है। " कहते हुए प्रिंसिपल साहब ने उसे जर्मनी जाने के लिए पूर्ण रूप से सहायता और वह चाहे जितने दिनो की छुट्टी मंजूर करने का आश्वासन दिया।
आजकल धीरज को मिलने गांव के छोटे बड़े बहुत से लोग आने लगे थे। उसके साथ जिनकी जान पहचान नहीं थी ऐसे लोग भी उससे आकर इस तरह मिलते और बातें करते थे जैसे उनकी धीरज से बहुत पुरानी पहचान हो। देखते ही देखते एक सामान्य शिक्षक को लोगों ने वी . आय. पी. बना दिया था। समाज के अमीर , गरीब , जवान -बूढ़े हर वर्ग के लोग उसे क्यों मिलने आते है यह धीरज समज चूका था।
वह विदेश को जाने वाला था इसीलिए एकदम उसे प्रतिष्ठित व्यक्ति लोगों ने बना दिया था। आज तक उसने बहुत सी कथाएं लिखी थी। मासिक पत्रिकाओं और अखबारों में छपवाने के लिए भेजी थी। मगर आज तक किसी ने उसकी रचना छापने का कष्ट नहीं किया। इतना ही नहीं उसका अप्रकाशित साहित्य उसे लौटाने का सौजन्य भी उनमे से किसी ने नहीं दिखाया था। उसके पत्रों का जवाब तक देने की सभ्यता किसी ने नहीं दिखाई थी। उसी धीरज को समाज ने आज एकदम लेखक और साहित्यकार कहना शुरू कर दिया था। देश विदेश से आई हुई अलग अलग 600 कथाओं में से उसकी कथा प्रथम पुरस्कार के लिए जर्मनी में चुन ली गई थी। देश में न सही विदेश में तो अपनी रचना को सराहा गया इस बात से धीरज संतुष्ट था।
जैसे जैसे प्रयाण के दिन नजदीक आये धीरज का दिल धड़कने लगा। जर्मनी कैसा देश होगा ? हवाई जहाज का सफर कैसा होगा पूरी विदेश यात्रा कैसी रहेगी ? इन प्रश्नों से उसकी रातों की नींद उड़ा दी थी। अड़ोस पड़ोस में और मित्र परिवारों में धीरज के विदेश यात्रा की चर्चा भी जोरों में थी।
'' जर्मन सुंदरियों के साथ रहकर कहीं अपने आपको खो न देना तुम्हारी माँ और बहन की जिम्मेदारी तुम पर है। " पड़ोस की एक महिला ने अपना स्त्री सुलभ उपदेश दिया।
----- अजित कुमार
कहानी का अगला और अंतिम भाग -३ अगले सप्ताह में .................
0 टिप्पणियाँ