भ्रमण  भाग - 3
              गतांक से आगे............... 
जैसे जैसे प्रयाण  के दिन नजदीक आये धीरज का दिल धड़कने लगा।  जर्मनी कैसा देश होगा ? हवाई जहाज का सफर कैसा होगा पूरी विदेश यात्रा कैसी रहेगी ? इन प्रश्नों से उसकी रातों की नींद उड़ा दी थी।  अड़ोस पड़ोस में और मित्र परिवारों में धीरज के विदेश यात्रा की चर्चा भी जोरों में थी। 
                '' जर्मन सुंदरियों के साथ रहकर कहीं अपने आपको खो न देना तुम्हारी माँ और बहन की जिम्मेदारी तुम पर है। " पड़ोस की एक महिला ने अपना स्त्री सुलभ उपदेश दिया।  
                कुछ लोगों ने जर्मनी से अपने लिए क्या क्या वस्तुएं लानी उनकी सूची भी उसे दी।  '' बाद में आप भूल जायेंगे इसलिए पहले पैसे ले लीजिये '' एक मित्र ने आग्रह किया।  '' भारतीय मुद्रा जर्मनी में काम नहीं आती पैसे मै यंहा वापस आने के बाद ले लूंगा '' कहकर धीरज ने उसका समाधान किया। 
                 जर्मनी में आप हैम्बर्ग में रहेंगे या फ्रैंकफर्ट में ! बर्लिन शहर जरूर देखना।  '' भूगोल विषय पढ़ानेवाले उसके सहपाठी शिक्षक ने जर्मनी के बारे में धीरज से ऐसी बातचीत शुरू की जैसे वह जर्मनी में रहकर आया हो। उसके समाधान के लिए धीरज ने कहा - '' मै आपके कथानुसार जितने हो सके उतने शहर देखने की कोशिश करूँगा।  मगर पहले मुझे वौइस् ऑफ जर्मनी के कॉलिन शहर में स्थित कार्यालय में पुरस्कार लेने के लिए जाना है। 
            जर्मनी के बारे में बातें करते समय कोलोन शहर का नाम लेना भूल गया यह बात भूगोल के शिक्षक को खटक रही थी।  अपना भूगोल का ज्ञान धीरज को अवगत करने के उद्देश से उसने कहा - '' धीरज !  जर्मनी के वास्तव्य में कितना ही कम समय क्यों न मिले तुम व्हियना जरूर देख आना जर्मनी का वह सबसे सुन्दर शहर है।  '' 
           भूगोल के अध्यापक का भूगोल का ज्ञान देखकर धीरज को हंसी आयी। वियेन्ना शहर जर्मनी में नहीं ऑस्ट्रेलिया में है यह बताकर भूगोल के अध्यापक को अपमानित करने की धीरज की इच्छा न थी।  '' मै हो सका तो व्हियना जरूर जाऊंगा '' कहकर उसने उस अध्यापक का समाधान कर दिया।  
         प्रयाण का दिन आ गया।  सीतापुर में विमान की व्यवस्था न होने के कारण ट्रैन से ही मुंबई के लिए जाना था। मुंबई में अपने बाल मित्र चम्पालाल के घर दो दिन ठहर कर विमान द्वारा धीरज जर्मनी के लिए रवाना होने वाला था। 
          रेल्वे स्टेशन पर धीरज को छोड़ने वाली भीड़ को देखकर स्टेशन के और ट्रैन के प्रवासी कोई महान कलाकार या विशिष्ट व्यक्ति कहीं  जा रहा होगा समझकर लोग देखने लगे। जब उन्हें मालूम हुआ की एक मामूली अध्यापक विदेश जा रहा है तो उन्हें निराशा नसीब हुई।  माँ और बहन की भीगी पलके देख धीरज की आँखों में पानी आया।  मै जल्दी लौट कर आऊंगा।  कहकर उसने दोनों को समझाया।  मित्र परिवार और हितचिंतको से विदाई लेते वक़्त हर्ष और दुःख के अनोखे से मिश्रण से उसका मन भर आया था।  गाड़ी ने सीतापुर छोड़ा। आखिर एक मामूली अध्यापक विदेश की यात्रा पर निकल पड़ा था।