भ्रमण - 4
                                       गतांक  से ----  
मै जल्दी लौट कर आऊंगा।  कहकर उसने दोनों को समझाया।  मित्र परिवार और हितचिंतको से विदाई लेते वक़्त हर्ष और दुःख के अनोखे से मिश्रण से उसका मन भर आया था।  गाड़ी ने सीतापुर छोड़ा। आखिर एक मामूली अध्यापक विदेश की यात्रा पर निकल पड़ा था।   
            आखिर रेल का सफर शुरू हुआ।  मुंबई पहुँचने पर मोटा चम्पालाल उसे लेने आया था।  दोनों  मित्र बहुत वर्षों बाद मिल रहे थे। ड्राइवर ने धीरज की सूटकेस उठाई और बाहर खड़ी हुई कार में रख दी।  कार स्टार्ट हो गई रास्ते में दोनो ने बातें करने लगे।  चम्पालाल और धीरज दोनों बचपन के मित्र थे।  धीरज ज्यादा बुद्धिमान था फिर भी परिस्थिति ने उसे शिक्षक बना दिया था।  चम्पालाल बड़े बाप का बेटा होने से शिक्षा पूर्ण होते ही सिफारिश के सहारे एक अच्छी कंपनी में ज्वाइन हो गया और आज कंपनी जनरल मैनेजर था। 
            चम्पालाल के फ्लैट के सामने कार खड़ी हो गई।  चम्पालाल की  पत्नी ने धीरज का स्वागत किया।  चम्पालाल की शादी में धीरज आया था।  इन पांच वर्षों में भाभी बदल सी गई मालूम हो रही थी।  चम्पालाल के घर पर धीरज का अच्छा स्वागत हुआ।  उसका घर बड़ा आलीशान था।  करीब 8 लाख रूपए उसने इस फ्लैट पर खर्च किये थे।  घर में दो तीन  नौकर  थे।  आज तो धीरज के आने से चम्पालाल ने छुट्टी ले रखी थी।  उसने अपने दोस्तों से धीरज का परिचय कराया। 
          धीरज चम्पालाल का ऐश्र्वर्य देखकर प्रभावित हुआ था।  चम्पालाल ने मुंबई  में और भी दो बंगले खरीद रखे थे।  चम्पालाल ने धीरज के साथ जर्मन एम्बेस्सी के कार्यालय में जाकर वीसा , परिचय पत्र कोलोन आने जाने का टिकट उसे दिलवा दिया।  पासपोर्ट धीरज को पहले ही मिल चूका था।  
           रविवार को उसे विमान से जर्मनी रवाना होना था।  दिल धड़क रहा था।  जिंदगी में पहली बार वह विदेश जा रहा था और पहली बार वह विमान में सफर करने वाला था।  यह विमान का सफर कुछ ही घंटों का था।  रात भर जर्मनी के बारे में सोंचते सोंचते उसे बहुत देर तक नींद नहीं आयी। रात करवटे बदलते हुई बीत गयी।  
           सफर का दिन आ ही गया रविवार को चम्पालाल उसकी पत्नी और बच्चों के साथ उसे पहुँचाने हवाई अड़ड़े पर पहुंचा था।  अपने खास दोस्त से विदाई लेकर धीरज विमान में बैठा। विमान के आकाश में उड़ते ही उसकी विदेश यात्रा आरम्भ हो गई।   
           कोलोन एयरपोर्ट पर जब विमान उतरा तब अँधेरा हो गया था।  परन्तु विद्युत् रोशनी की जगमघाट से वातावरण प्रकाशमय था।  सर्दी काफी थी।  गरम कपड़ों के बावजूद धीरज का शरीर ठण्ड से काँप रहा था।  विमान प्रवास और परदेशगमन का अनुभव लेने के बाद मन खुश था।  नए देश का नया वातावरण - नए चेहरे  हर तरफ नयापन दिखाई दे रहा था।  यह अनुभव अजीब था। 
             दूसरे दिन वौइस् ऑफ़ जर्मनी के कार्यालय में आयोजित समारोह में धीरज और उसके दोनों साथियों का परिचय लोगों से करा दिया गया और उसके लेखन की सराहना कर पुरस्कार दिए गए। धीरज पुरस्कार का दस हजार मार्क का चेक लेकर बहुत खश था।  अपनी विदेश यात्रा , सत्कार मान सन्मान से अधिक पुरस्कार राशि की ख़ुशी थी। इस राशि का भारतीय चलन में परिवर्तन करने के बाद बहन के शादी के लिए अपने पास कितनी रकम जमा होगी इसका विचार उसके मन में आया था।  वॉइस ऑफ जर्मनी के रेडियो पर धीरज और उसके दोनों एशिया के साथियों का इंटरव्यू भी हुआ।   


            समारंभ के पश्चात कुछ भी काम नहीं था।  लौटने की तारीख और फ्लाइट निश्चित हो चुकी थी।  इस बीच उसके पास 8 दिनों में जितना हो सके जर्मनी देखने का उन तीन मित्रों ने तय कर लिया। 
            फ़्रंकफ़र्ट , हैम्बर्ग म्युनिक जैसे शहर देखने के बाद धीरज की समझ में आया की पूरी जर्मनी देखना असंभव था।  देखने लायक इतना जबकि 4 महीने का समय मिला तो भी पूरी जर्मनी देखना असंभव था। अंतिम दो दिनों में कोलोन शहर देखने का निश्चय किया। जिस कोलोन शहर ने उसके जीवन को प्रगति पथ पर लाकर खड़ा किया था उस शहर पर उसका अधिक प्रेम रहना स्वाभाविक था। 
             राइन  नदी के किनारे बसा कोलोन शहर अत्यंत सुन्दर और बहुत बड़ा रेलवे जंक्शन होने के कारण प्रसिधा है।  धीरज ने जर्मनी की राजधानी ' बॉन ' कोलोन देखने से पहले ही देखली थी।  कोलोन में रोमन लोगों ने दो हजार वर्ष पहले ही बस्ती बसाई थी।  बस्ती यानि कॉलोनी , इसी कॉलोनी शब्द का आगे चलकर  ' कोलोन ' बना।  रोमन गवर्नर की हवेली , रोमन - जर्मन म्यूजियम , आर्ट गैलरी देखने के बाद धीरज और उसके मित्र कोलोन का विश्व प्रसिद्धः कैथेडरल देखने गए। 515 फिट ऊँचा यह  कैथेडरल  निर्माण के लिए 600 वर्षों का कालावधि लगा।                  
          कैथेडरल की रचना का इतिहास भी विस्मय कारक है। यह कैथेडरल सं 1880 में पूर्ण हुआ। कोलोन विश्वविद्यालय भी 700 वर्ष पुराना  है।  वैसे तो कोलोन शहर की आबादी लगभग दस लाख है।  इस छोटी आबादी के सुन्दर शहर को देखते समय अचानक धीरज को मुंबई की याद आ गई और मुंबई का विशाल आबादी का चित्र सामने आते ही उसके रोंगटे खड़े हो गए। 
            कोलोन शहर देखते देखते आखिरकार वापस लौटने का दिन आ गया। अपने मित्रों से भावपूर्ण विदा लेकर धीरज मुंबई लौटने के लिए विमानस्थल पहुँच गया।  जर्मनी की यादों को सिमटे धीरज भारत लौट चूका था।  इस तरह एक सामान्य अध्यापक अपनी लेखनी के बल पर विदेश की यात्रा कर आया था।