मोना नहीं नजमा हूँ 




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दशहरा को अभी दो दिन बाकि थे । पाठशालाओं को दशहरे की छुटियाँ होने के कारण  बच्चे घरों में ही थे । महेश तथा नेहा की भी आठ वर्षीय बेटी मोनिका आज तो बिस्तर से उठी भी नहीं थी । सवेरे के दस बज रहे थे । नेहा किचन में महेश के लिए नाश्ता और चाय बना रही थी । इधर महेश ऑफिस जाने की तैयारी में जुटा था ।
               महेश ने नेहा को आवाज लगाते हुए पूछा - ' क्या अभी तुम्हारा नाश्ता तैयार हुआ या नहीं । मेरा ऑफिस जाने का समय हो रहा है ।' कुछ ही पलों में गरमा - गरम नाश्ता लेकर नेहा डाइनिंग टेबल पर पहुंच गई  । दोनों ने गप-शप करते हुए नाश्ता किया । महेश ने अपना ऑफिस बैग उठाया और वह ऑफिस के लिए निकल पड़ा ।
             नेहा ने पति को विदा कर दरवाजा बांध कर दिया और झूठे नाश्ते के बर्तन समेटकर किचन में ले गई । वह मन ही मन आज के काम की योजना बना रही थी । किचन का काम समाप्त कर वह हॉल में आकर बैठ गई । उसने टी .वी. ऑन किया और अपना पसंदीदा नए पुराने गानो का चैनल लगाया और गानो को गुनगुनाते हुए उसमे खो गई ।
            तभी उसका मोबाइल  फ़ोन बजने लगा , टी.वी. का वॉल्यूम धीमा कर उसने मोबाइल उठाया देखा तो सामने से उसकी बचपन की सहेली आशा बात करना चाह रही थी । '' हेलो , आशा गुड मॉर्निंग ! आज सवेरे ही कैसे याद किया ? '' आशा ने हँसते हुए कहा - '' देख , नेहा अभी घंटेभर में मै तेरे पास आ रही हूँ । क्या तुझे समय है ? '' आरी आशा तू आ जा मेरे पास तेरे लिए समय ही समय है ।
            नेहा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था , वह उठी और बेडरूम की ओर लपकी - '' मोना ए मोना उठो अभी दस बज रहे है , तुम्हारी आशा आंटी कुछ देर में आने वाली है । चलो झट से ब्रश कर लो और तैयार हो जाओ । नेहा की इतनी बातों से मोना के कानो पर जूं भी नहीं रेंगी  । वह उसी तरह कम्बल ओढ़े सोती रही । तब नेहा ने पास जाकर उसको हिलाकर जगाना चाहा । रोज मम्मा - मम्मा करते उठाने वाली मोना आज बिस्तर पर उठ बैठी और एकटक हैरानी से नेहा की ओर देख घूरने लगी । मोना के चेहरे पर आश्चर्य के भाव साफ नजर आ रहे थे ।
             नेहा को उसका इस तरह देखना  कुछ संदेहास्पद  लगा।  उसने मोना से कहा '' यह क्या बेटी आज तुम्हे क्या हो गया है ? चलो जल्दीसे उठो और ब्रश कर तैयार हो जाओ । ''  मोना ने एक दीर्घश्वास लेकर कहा - '' आंटीजी आप कौन है ,और मुझे मोना मोना क्यों कह रही हो ? '' मोना के मूँह से इस तरह की बात सुनते ही नेहा का हाल हिरोशिमा पर अणु बम गिराने जैसा हो गया । वह अब मोना को हैरत से निहार रही थी । कारण मोना ने जिस तरह बात की थी वह अचरज भरी थी।  मोना ने अपनी  बातों में उर्दू शब्द गुसलखाने जाने क्यों कह रही हो  का प्रयोग किया था , जबकि मोना उर्दू और उर्दू शब्दोंसे कोसों दूर थी ।  
               अब तक उत्साह के मारे खुश नेहा अब एकदम मुरझा गई थी । चेहरे पर ख़ुशी की जगह उदासी ने ले ली थी ।  टी वी पर उसका पसंदीदा गाना बज रहा था पर नेहा विचारों के मक्कड़ जाल में फंसती चली जा रही थी ।  आज तक मोना ने ऐसी विचित्र बात बात कभी नहीं कही थी । वह विचारों में इतनी खो गई की दरवाजे पर उसकी सहेली आशा कॉल बेल बजाती रही पर नेहा इससे अनजान थी ।  आखिरकार आशा ने मोबाइल पर फ़ोन किया तब जाकर नेहा ने फ़ोन उठाया तो आशा ने कहा - '' आरी , नेहा क्या तुम सो गई थी । मै  करीब पंद्रह मिनिटों से कॉल बेल बजाये जा रही हूँ । चल दरवाजा तो खोल ।  नेहा किसी तरह उठी और दरवाजे का बोल्ट खोल दिया ।  
              क्या नेहा कब से मै बेल बजाय जा रही थी पर तुम दरवाजा ही नहीं खोल रही थी क्या हुआ ? नेहा का मुरझाया हुआ चेहरा देख आशा के मन में शंका आ ही गई । आशा की बेटी ने पूछाः - '' आंटी मोना किधर है ? इसपर भी नेहा ने कोई उत्तर नहीं दिया । तब  आशा की शंका विश्वास में बदल गई । जब कभी आशा के साथ तान्या आती तो नेहा बहुत खुश हो जाती परन्तु आज तो तान्या ने विश किया उसका उत्तर नहीं दिया  यंहा तक की मोना के बारे में पूछा तो उसका भी कोई उत्तर नहीं । आशा ने अंदाजा लगाया यहाँ कुछ न कुछ गंभीर बात घटी है । आशा ने ही फ्रिज खोला और पानी की बोतल निकाली , अपनी बेटी को पानी देकर नेहा को भी पानी पिलाया ।