मै मरना नहीं चाहता
आज क्या हुआ पता नहीं रात का एक भी कब का बज चूका था। इतनी मिन्नतें करने के बावजूद कोई भी आत्मा हमारे प्लेंचेट पर आने तैयार नहीं थी। मेरे अलावा मेरे तीन मित्र भी मेरे साथ ही परेशान थे।
खैर , मै तो प्लेंचेट से बहुत अच्छी तरह परिचित था। परन्तु मेरे मित्र आत्मा को किस तरह बुलाते है और सच में वह उपस्थित होती है क्या ?ऐसे ही अनेक उत्सुकता भरे प्रश्न उनके मन उधम मचा रहे थे। वैसे आज मै भी हैरान था की आज क्या हुआ इतनी मिन्नतें करने के बाद भी कोई आत्मा आने को तैयार नहीं थी।
हम आज का अवसर गंवाना नहीं चाहते थे। इसके लिए हमने शाम से ही तैयारी कर रखी थी। जिसके अंतर्गत एक बड़ा सफ़ेद रंग का चार्ट लिया उसपर एक पंक्ति में कई गोल बनाकर उसमे अंग्रेजी के A से लेकर Z तक अक्षर लिखे। फिर उसी के नीचे उसी तरह गोल बनाकर उसमे शुन्य से लेकर एक तक संख्या लिखी। इसके पश्चात केवल सबसे नीचे तीन गोल बनाकर एक में YES दूसरे में NO तथा तीसरे में HOME लिखकर हमारा प्लेंचेट चार्ट तैयार किया था। इसके बाद एक कांच का गिलास लेकर होम के गोल पर उल्टा रखकर उसपर हम चारों मित्रों ने उंगली से हल्का स्पर्श किया। मै इसमें जानकार होने के कारण आत्मा को आवाहन करने का जिम्मा मेरा था।
कई घंटे बिताने के बावजूद आत्मा नहीं फटकी थी। इस कारण सबसे अधिक मै उदास था , मेरे मित्र मुझपर विश्वास कर अपनी उत्सुकता थामे परिणाम की प्रतीक्षा में एक अनामिक भय को थामे एक दूसरे का चेहरा ताक रहे थे। हमने इस अवसर पर बत्ती बुझा दी थी। कमरे में केवल एक मोमबत्ती टिमटिमा रही थी।
मै पुनः अपनी इच्छाशक्ति को एकजुट कर अपने दादाजी की आत्मा का आवाहन करने लगा। शायद उस समय तीन बज रहे थे। कहीं दूर से तीन बजने का अलार्म की आवाज आ रही थी। तभी अचानक उस गिलास में हमने कुछ हलचल महसूस की। उसी के साथ हमारी उत्सुकता बड़ी हम अपनी उंगलियां हटाय बीना उस गिलास को घूरने लगे।
मै बार बार दादाजी की आत्मा को प्लेंचेट पर आने के लिए मिन्नतें कर रहा था। मैंने दादाजी से कहा - '' देखो दादाजी , आप नहीं आये तो मेरे मित्रों के सामने मेरा अपमान हो जायेगा। आपको इससे अच्छा लगेगा ?'' तभी गिलास की हलचल और बढ़ गई। यह देख मैंने उसी समय दादाजी को प्रश्न पूछा - '' अगर दादाजी आप यहां मौजूद है तो ' YES' के जगह सरकिये। ' बस कहने की देरी थी की गिलास अपने आप लड़खड़ाता हुआ
' YES ' अंकित गोल पर रुक गया।
गिलास के अपने आप सरकने से मेरे मित्रों का कौतुहल काफी बड गया और वे मेरी ओर घबराकर देखने लगे। मैंने पुनः दादाजी को अपने स्थान पर लौटने के लिए कहा। इसपर गिलास फिर से लड़खड़ाता हुआ अपने स्थान पर आकर रुक गया।
यह देख आत्मा की सत्यता जानना मेरे लिए काफी महत्वपूर्ण था। इसलिए मैंने प्रश्न पूछा की - '' दादाजी आपके जीवित रहते हुए एक दिन आप ने मुझे खूब क्यों मारा था ? बताइये ना ! गिलास उसी तरह वहीं डटा रहा। तब मैंने दूसरा प्रश्न पूछा खैर , दादाजी आप मुझे लाड से किस नाम से बुलाते थे। बस उसका प्रथम शब्द बता देना। '' इसपर भी गिलास वंही डटा रहा। जब मैंने जोर देकर पुनः पूछा तो गिलास धीरे धीरे असामजस्य की स्थिति में 'k' शब्द पर जा रुका। मैंने कहा ठीक है। आप पुनः अपने स्थान पर लौटे। उसी के साथ गिलास झट से अपने स्थान पर आकर रुक गया। मैंने प्रार्थना करते हुए कहा - '' दादाजी आप मेरे बुलाने पर यहां आये मेरा मान बढ़ाया इसके लिए धन्यवाद। अब आप जा सकते है।'' और मैंने गिलास को सीधे किया और अपना हाथ हटा लिया।
मेरी इस हरकत से मेरे मित्र मुझ पर नाराज हुए। कारण उन्हें भी आत्मा से बहुत कुछ पूछना था। तब मैंने उन्हें बताया की मैंने दादाजी की आत्मा को प्लेंचेट पर बुलाया था परन्तु यहां आनेवाली आत्मा दादाजी की आत्मा नहीं थी। तब उन्होंने हैरानी से पूछा वह कैसे तुम्हे पता चला ? देखो जब हम कभी किसी आत्मा को बुलाते है तब उसकी सत्यता जानना आवश्यक होता है। हमारे आसपास अनेक आत्माये होती है जिसमे अच्छी बुरी सभी आत्माये होती है हम जब किसी आत्मा का आवाहन करते है तब वहां मौजूद आत्मा घुस जाती है। अगर यह आत्मा अतृप्त होगी तो वह हमारा नुकसान करेगी। इस कारण हमें पहले आत्मा को परखना चाहिए।
[ क्रमश ] अगली कहानी दूसरे भाग में
मै मरना नहीं चाहता |
खैर , मै तो प्लेंचेट से बहुत अच्छी तरह परिचित था। परन्तु मेरे मित्र आत्मा को किस तरह बुलाते है और सच में वह उपस्थित होती है क्या ?ऐसे ही अनेक उत्सुकता भरे प्रश्न उनके मन उधम मचा रहे थे। वैसे आज मै भी हैरान था की आज क्या हुआ इतनी मिन्नतें करने के बाद भी कोई आत्मा आने को तैयार नहीं थी।
हम आज का अवसर गंवाना नहीं चाहते थे। इसके लिए हमने शाम से ही तैयारी कर रखी थी। जिसके अंतर्गत एक बड़ा सफ़ेद रंग का चार्ट लिया उसपर एक पंक्ति में कई गोल बनाकर उसमे अंग्रेजी के A से लेकर Z तक अक्षर लिखे। फिर उसी के नीचे उसी तरह गोल बनाकर उसमे शुन्य से लेकर एक तक संख्या लिखी। इसके पश्चात केवल सबसे नीचे तीन गोल बनाकर एक में YES दूसरे में NO तथा तीसरे में HOME लिखकर हमारा प्लेंचेट चार्ट तैयार किया था। इसके बाद एक कांच का गिलास लेकर होम के गोल पर उल्टा रखकर उसपर हम चारों मित्रों ने उंगली से हल्का स्पर्श किया। मै इसमें जानकार होने के कारण आत्मा को आवाहन करने का जिम्मा मेरा था।
कई घंटे बिताने के बावजूद आत्मा नहीं फटकी थी। इस कारण सबसे अधिक मै उदास था , मेरे मित्र मुझपर विश्वास कर अपनी उत्सुकता थामे परिणाम की प्रतीक्षा में एक अनामिक भय को थामे एक दूसरे का चेहरा ताक रहे थे। हमने इस अवसर पर बत्ती बुझा दी थी। कमरे में केवल एक मोमबत्ती टिमटिमा रही थी।
मै पुनः अपनी इच्छाशक्ति को एकजुट कर अपने दादाजी की आत्मा का आवाहन करने लगा। शायद उस समय तीन बज रहे थे। कहीं दूर से तीन बजने का अलार्म की आवाज आ रही थी। तभी अचानक उस गिलास में हमने कुछ हलचल महसूस की। उसी के साथ हमारी उत्सुकता बड़ी हम अपनी उंगलियां हटाय बीना उस गिलास को घूरने लगे।
मै बार बार दादाजी की आत्मा को प्लेंचेट पर आने के लिए मिन्नतें कर रहा था। मैंने दादाजी से कहा - '' देखो दादाजी , आप नहीं आये तो मेरे मित्रों के सामने मेरा अपमान हो जायेगा। आपको इससे अच्छा लगेगा ?'' तभी गिलास की हलचल और बढ़ गई। यह देख मैंने उसी समय दादाजी को प्रश्न पूछा - '' अगर दादाजी आप यहां मौजूद है तो ' YES' के जगह सरकिये। ' बस कहने की देरी थी की गिलास अपने आप लड़खड़ाता हुआ
' YES ' अंकित गोल पर रुक गया।
गिलास के अपने आप सरकने से मेरे मित्रों का कौतुहल काफी बड गया और वे मेरी ओर घबराकर देखने लगे। मैंने पुनः दादाजी को अपने स्थान पर लौटने के लिए कहा। इसपर गिलास फिर से लड़खड़ाता हुआ अपने स्थान पर आकर रुक गया।
यह देख आत्मा की सत्यता जानना मेरे लिए काफी महत्वपूर्ण था। इसलिए मैंने प्रश्न पूछा की - '' दादाजी आपके जीवित रहते हुए एक दिन आप ने मुझे खूब क्यों मारा था ? बताइये ना ! गिलास उसी तरह वहीं डटा रहा। तब मैंने दूसरा प्रश्न पूछा खैर , दादाजी आप मुझे लाड से किस नाम से बुलाते थे। बस उसका प्रथम शब्द बता देना। '' इसपर भी गिलास वंही डटा रहा। जब मैंने जोर देकर पुनः पूछा तो गिलास धीरे धीरे असामजस्य की स्थिति में 'k' शब्द पर जा रुका। मैंने कहा ठीक है। आप पुनः अपने स्थान पर लौटे। उसी के साथ गिलास झट से अपने स्थान पर आकर रुक गया। मैंने प्रार्थना करते हुए कहा - '' दादाजी आप मेरे बुलाने पर यहां आये मेरा मान बढ़ाया इसके लिए धन्यवाद। अब आप जा सकते है।'' और मैंने गिलास को सीधे किया और अपना हाथ हटा लिया।
मेरी इस हरकत से मेरे मित्र मुझ पर नाराज हुए। कारण उन्हें भी आत्मा से बहुत कुछ पूछना था। तब मैंने उन्हें बताया की मैंने दादाजी की आत्मा को प्लेंचेट पर बुलाया था परन्तु यहां आनेवाली आत्मा दादाजी की आत्मा नहीं थी। तब उन्होंने हैरानी से पूछा वह कैसे तुम्हे पता चला ? देखो जब हम कभी किसी आत्मा को बुलाते है तब उसकी सत्यता जानना आवश्यक होता है। हमारे आसपास अनेक आत्माये होती है जिसमे अच्छी बुरी सभी आत्माये होती है हम जब किसी आत्मा का आवाहन करते है तब वहां मौजूद आत्मा घुस जाती है। अगर यह आत्मा अतृप्त होगी तो वह हमारा नुकसान करेगी। इस कारण हमें पहले आत्मा को परखना चाहिए।
[ क्रमश ] अगली कहानी दूसरे भाग में
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