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डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवारजी 


                  सारे विश्व में सबसे प्राचीन संस्कृतिवाला हमारा देश सनातन धर्म के मूल संस्कार के अनुसार "वसुधैव कुटुम्बकम" को थामे प्रगति के पथ पर अग्रसर है। "वसुधैव कुटुम्बकम" का यह अर्थ होता है कि 'धरती ही परिवार है।' जबकि यह हमारे भारतीय संसद के प्रवेशकक्ष में भी अंकित किया गया है, इससे यह बात स्पष्ट होती है कि हमारे देश की नीव प्राचीन संस्कृति के आधार पर रखी गई है।

                सं. 1947 देश गुलामी की जंजीरों से आज़ाद हुआ है तब से हमारे देश में अधिकतर वर्षों तक कांग्रेस ने ही अपना शासन किया है। वैसे उस दौर के नेताओं में स्वार्थ से बढकर देशहित सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण था। लेकिन समय के कालचक्र में कांग्रेस के स्वार्थ त्यागी नेताओं की जगह स्वार्थ भोगी नेताओं ने ली है। इसका बदलाव पिछले कांग्रेस के शासनकाल में देखने को मिलता है। देश को प्रगति के पथ पर ले जाने के बजाय देश को धार्मिक कटटरता की भट्टी में झोंक दिया है। इसका कारण भी वैसा ही है कांग्रेस पार्टी ने एक परिवार का दामन थाम रखा है। वह परिवार केवल अपनी तिजोरी भरने में व्यस्त रहा, जब राजा ही देश हित को छोड़कर तिजोरियाँ भरने में व्यस्त रहा तो उसके मंत्री इससे कैसे अछूते रहते।

                  27 मई 2014, में भारतीय जनता पार्टी ने श्री. नरेंद्र मोदीजी के नेतृत्व में सरकार स्थापित की। उस सरकार ने देश की प्रगति को बढ़ाने नोटबंदी, भ्रष्टाचार समाप्ति, देश की अखंडता कायम करने विभिन्न कानूनों को बनाया और प्रगति में बाधक कानूनों को हटाया भी। इन सब कारणों से श्री. मोदीजी की जनता में तथा विदेशों में बढ़ती लोकप्रियता देख कांग्रेस तिलमिला गई और उन्हें सत्ता से उखाड़ फेंकने साम्प्रदायिकता का कड़वा जानलेवा जहर जनता के मनो में घोलने का दुष्चक्र चलाया।

               आज सिटीजन्स अमेण्डमेंट एक्ट और एन .आर .सी.के विरोध में देश को बांटने और धार्मिक उन्माद का नंगा नाच हमने देखा है। कांग्रेस तो पडोसी देश के दुष्प्रचार का विरोध करने के बजाय उनके सुर को ही अलाप रही है। आज हिन्दुओं पर दंगे भड़काने का लेबल चिपकाने का भरपूर प्रयास किया गया वहीं आर. एस. एस. के विरुद्ध कांग्रेस और तथाकथित बुद्धिजीवियों ने भी आग में घी डालने की कोई कसर नहीं छोड़ी। बार-बार आर.एस. एस. का अनायास ही उद्घोष करते रहें तो उसके संस्थापक डॉ. केशवराव बलीराम हेडगेवारजी की निस्वार्थ देश सेवा हमारी यादों की परतों से बाहर आकर उनके सामने नतमस्तक होने प्रेरित करता है। 
             डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवारजी का जन्म 1 अप्रैल 1889 को
नागपुर स्थित एक गरीब ब्राम्हण परिवार पंडित बलिराम पंत हेडगेवारजी के घर में हुआ था। उनकी माताजी का नाम रेवतीबाई था। बचपन से ही वे क्रन्तिकारी प्रवृत्ति के थे। इस कारण उन्हें अंग्रेज शासकों से बहुत घृणा थी। बचपन के दिनों में जब वे स्कूल में पढ़ रहे थे उस दौरान एक अंग्रेज इंस्पेक्टर स्कूल का निरिक्षण करने पहुंचा तो श्री.हेडगेवारजी ने अपने सहपाठियों के साथ मिलकर "वन्दे मातरम" के जयघोष से उस इंस्पेक्टर का स्वागत किया। उनके इस तरह के स्वागत से अंग्रेज अधिकारी क्रोधित हो गया और उन्हें स्कूल से निकाल देने का आदेश फ़रमाया।

          इस कारण उन्होंने अपनी मैट्रिक तक की शिक्षा पूना स्थित नेशनल स्कूल से पूरी की। इसके पश्चात श्री. हेडगेवारजी सं. 1910 में डॉक्टरी की पढाई करने के लिए कोलकत्ता गए हुए थे, उस दौरान वे क्रांतिकारी संस्था अनुशीलन समितीसे जुड़ गए थे।

राजनीतिक जीवन :-

         सं. 1915 में कोलकत्ता से नागपुर लौटने पर डॉ. हेडगेवारजी कांग्रेस में सक्रीय हो गए और अल्प समय में ही वे विदर्भ प्रांतीय कांग्रेस के सचिव भी बन गए थे। नागपुर में सं. 1920 में कांग्रेस का देश स्तरीय अधिवेशन आयोजित किया गया था। उस अधिवेशन में पहली बार डॉ. हेडगेवारजी ने पूर्ण स्वतंत्रता को लक्ष्य बनाने एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। वहीं सं. 1921 में उन्होंने कांग्रेस के असहयोग आंदोलन सत्याग्रह में हिस्सा लिया था, जिस कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और एक वर्ष जेल में भेज दिया गया था। 
         डॉ. हेडगेवारजी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कांग्रेस में बड़ी तन्मयता के साथ भाग लिया था, तब यह सोंचने को उन्हें मजबूर होना पड़ा कि समाज में जिस तरह एकता कि धुंधली पड़ी देशभक्ति की भावना के कारण हम परतंत्र है। यह केवल कांग्रेस के जन आंदोलन से जागृत नहीं हो सकती। उनका मानना था कि जनतंत्र का परतंत्र के विरुद्ध, विद्रोह की भावना जगाने का कार्य बेशक चलता रहे। परन्तु राष्ट्र जीवन में गहरी हुई विघटनवादी प्रवृत्ति को दूर करने के लिए कुछ भिन्न उपाय की आवश्यकता है।

            जब वे अनुशीलन समिति से जुड़े तब उन्हें समिति का साधारण सदस्य ही बनाया गया था। डॉ. हेडगेवारजी को समिति के कार्यकुशलता पर खरे उतरे तो उन्हें समिति का अंतरंग सदस्य बनाया गया था। वहीं उनकी त्रीव नेतृत्व प्रतिभा को देखते हुए उन्हें हिन्दू महासभा बंगाल प्रदेश का उपाध्यक्ष भी बनाया गया था। यहीं से उन्होंने क्रांतिकारियों की समस्त गतिविधियों का ज्ञान तथा संगठन-तंत्र का ज्ञान कोलकता में सीखा। वैसे कोलकता में लोग उन्हें केशव चक्रवर्ती के नाम से ही जानते थे।

          सं। 1929 में कांग्रेस द्वारा लाहौर में आयोजित अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पास किया गया था और इसमें 26 जनवरी 1930 को देशभर में तिरंगा फहराने का आवाहन किया गया था। उस समय डॉ. हेडगेवारजी के निर्देश पर सभी संघ शाखाओं में 30 जनवरी को तिरंगा फहराकर पूर्ण स्वराज्य प्राप्ति का संकल्प लिया गया था।

            सं. 1922 में भारत के राजनितिक पटल पर गांधीजी के आने के पश्चात ही मुस्लिम साम्प्रदायिकता ने अपना सिर उठाना प्रारम्भ कर दिया था। उस दौरान खिलाफत आंदोलन को गांधीजी का पूरा सहयोग प्राप्त था। इसके पश्चात ही नागपुर तथा अन्य हिस्सों में हिन्दू-मुस्लिम दंगों का आगाज हो गया था। उस समय कुछ हिन्दू नेताओं ने माना कि हिन्दू एकता ही उनकी सुरक्षा कर सकती है। केरल के मालाबार में हुए दंगों के पश्चात वहाँ के पीड़ित हिन्दुओं की सहायता करने प्रमुख हिन्दू महासभा के नेता डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजेजी, आर्य समाज के नेता स्वामी श्रद्धानंदजी आदि थे। 

             प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की असफल क्रांति तथा तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखकर उन्होंने एक अर्ध-सैनिक संगठन की नींव रखी। इसका उद्देश्य "हिन्दुओं की रक्षा करना" एवं हिंदुस्तान को एक सशक्त हिन्दू राष्ट्र बनाना था ।

            आखिरकार 28 सितम्बर 1925 को विजयदशमी के शुभ मुहर्त  पर डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजेजी, डॉ. हेडगेवारजी, श्री.परांजपेजी तथा बापू साहेब सोनी ने "हिन्दू युवक क्लब" की स्थापना की। जिसको कालांतर में राष्ट्रिय स्वयं सेवक [R.S.S.] का नाम दिया गया।

             देश में कहीं भी नैसर्गिक आपदा हो या देश पर कोई विपत्ति आयी तो सबसे पहले वहाँ पहुँचने वाले संघ के कार्यकर्ता ही होते है। राजनीती से दूर राष्ट्र सेवा ही जिनका उद्देश्य हो आज उसपर ही आरोप लगाने का सिलसिला शुरू किया गया है।

              जब संघ की प्रार्थना कि रचना कि गई थी तब वह आधी मराठी में तथा आधी हिन्दी में थी। परन्तु सारे देश में एक स्वरुप और एक भाषा में ही प्रार्थना हो इसके लिए इस प्रार्थना का संस्कृत भाषा में अनुवाद किया गया है। हिन्दू समाज के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवारजी ने 21 जून 1940 में नागपुर में आखरी साँसे ली। ऐसे महान विभूति को नमन।