डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवारजी |
सं. 1947 देश गुलामी की जंजीरों से आज़ाद हुआ है तब से हमारे देश में अधिकतर वर्षों तक कांग्रेस ने ही अपना शासन किया है। वैसे उस दौर के नेताओं में स्वार्थ से बढकर देशहित सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण था। लेकिन समय के कालचक्र में कांग्रेस के स्वार्थ त्यागी नेताओं की जगह स्वार्थ भोगी नेताओं ने ली है। इसका बदलाव पिछले कांग्रेस के शासनकाल में देखने को मिलता है। देश को प्रगति के पथ पर ले जाने के बजाय देश को धार्मिक कटटरता की भट्टी में झोंक दिया है। इसका कारण भी वैसा ही है कांग्रेस पार्टी ने एक परिवार का दामन थाम रखा है। वह परिवार केवल अपनी तिजोरी भरने में व्यस्त रहा, जब राजा ही देश हित को छोड़कर तिजोरियाँ भरने में व्यस्त रहा तो उसके मंत्री इससे कैसे अछूते रहते।
27 मई 2014, में भारतीय जनता पार्टी ने श्री. नरेंद्र मोदीजी के नेतृत्व में सरकार स्थापित की। उस सरकार ने देश की प्रगति को बढ़ाने नोटबंदी, भ्रष्टाचार समाप्ति, देश की अखंडता कायम करने विभिन्न कानूनों को बनाया और प्रगति में बाधक कानूनों को हटाया भी। इन सब कारणों से श्री. मोदीजी की जनता में तथा विदेशों में बढ़ती लोकप्रियता देख कांग्रेस तिलमिला गई और उन्हें सत्ता से उखाड़ फेंकने साम्प्रदायिकता का कड़वा जानलेवा जहर जनता के मनो में घोलने का दुष्चक्र चलाया।
आज सिटीजन्स अमेण्डमेंट एक्ट और एन .आर .सी.के विरोध में देश को बांटने और धार्मिक उन्माद का नंगा नाच हमने देखा है। कांग्रेस तो पडोसी देश के दुष्प्रचार का विरोध करने के बजाय उनके सुर को ही अलाप रही है। आज हिन्दुओं पर दंगे भड़काने का लेबल चिपकाने का भरपूर प्रयास किया गया वहीं आर. एस. एस. के विरुद्ध कांग्रेस और तथाकथित बुद्धिजीवियों ने भी आग में घी डालने की कोई कसर नहीं छोड़ी। बार-बार आर.एस. एस. का अनायास ही उद्घोष करते रहें तो उसके संस्थापक डॉ. केशवराव बलीराम हेडगेवारजी की निस्वार्थ देश सेवा हमारी यादों की परतों से बाहर आकर उनके सामने नतमस्तक होने प्रेरित करता है।
डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवारजी का जन्म 1 अप्रैल 1889 को
नागपुर स्थित एक गरीब ब्राम्हण परिवार पंडित बलिराम पंत हेडगेवारजी के घर में हुआ था। उनकी माताजी का नाम रेवतीबाई था। बचपन से ही वे क्रन्तिकारी प्रवृत्ति के थे। इस कारण उन्हें अंग्रेज शासकों से बहुत घृणा थी। बचपन के दिनों में जब वे स्कूल में पढ़ रहे थे उस दौरान एक अंग्रेज इंस्पेक्टर स्कूल का निरिक्षण करने पहुंचा तो श्री.हेडगेवारजी ने अपने सहपाठियों के साथ मिलकर "वन्दे मातरम" के जयघोष से उस इंस्पेक्टर का स्वागत किया। उनके इस तरह के स्वागत से अंग्रेज अधिकारी क्रोधित हो गया और उन्हें स्कूल से निकाल देने का आदेश फ़रमाया।
इस कारण उन्होंने अपनी मैट्रिक तक की शिक्षा पूना स्थित नेशनल स्कूल से पूरी की। इसके पश्चात श्री. हेडगेवारजी सं. 1910 में डॉक्टरी की पढाई करने के लिए कोलकत्ता गए हुए थे, उस दौरान वे क्रांतिकारी संस्था अनुशीलन समितीसे जुड़ गए थे।
राजनीतिक जीवन :-
सं. 1915 में कोलकत्ता से नागपुर लौटने पर डॉ. हेडगेवारजी कांग्रेस में सक्रीय हो गए और अल्प समय में ही वे विदर्भ प्रांतीय कांग्रेस के सचिव भी बन गए थे। नागपुर में सं. 1920 में कांग्रेस का देश स्तरीय अधिवेशन आयोजित किया गया था। उस अधिवेशन में पहली बार डॉ. हेडगेवारजी ने पूर्ण स्वतंत्रता को लक्ष्य बनाने एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। वहीं सं. 1921 में उन्होंने कांग्रेस के असहयोग आंदोलन सत्याग्रह में हिस्सा लिया था, जिस कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और एक वर्ष जेल में भेज दिया गया था।
डॉ. हेडगेवारजी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कांग्रेस में बड़ी तन्मयता के साथ भाग लिया था, तब यह सोंचने को उन्हें मजबूर होना पड़ा कि समाज में जिस तरह एकता कि धुंधली पड़ी देशभक्ति की भावना के कारण हम परतंत्र है। यह केवल कांग्रेस के जन आंदोलन से जागृत नहीं हो सकती। उनका मानना था कि जनतंत्र का परतंत्र के विरुद्ध, विद्रोह की भावना जगाने का कार्य बेशक चलता रहे। परन्तु राष्ट्र जीवन में गहरी हुई विघटनवादी प्रवृत्ति को दूर करने के लिए कुछ भिन्न उपाय की आवश्यकता है।
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