सं.1975 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती. इंदिरा गाँधी ने आपातकाल की घोषणा करते हुए संघ पर प्रतिबन्ध लगाकर हजारों संघ के स्वयंसेवकों को मीसा, [Maintenance of Internal Security Act] तथा डी आई आर जैसे कानूनों के अंतर्गत विभिन्न जेलों में डाल दिया और उन्हें कई यातनाएँ दी गई थी। इन सबका विरोध करने के लिए परमपूजनीय बाला साहब देवरसजी के मार्गदर्शन में एक विशाल सत्याग्रह किया गया था। इस विशाल सत्याग्रह के पश्चात सं.1977 में हमारे देश से आपातकाल समाप्त हो गया और संघ से प्रतिबन्ध भी हट गया था।
जन्म :-
परमपूजनीय बाला साहब देवरसजी का जन्म 11 दिसम्बर 1915 में नागपुर स्थित इतवारी में हुआ था। उनके पिता एक सरकारी कर्मचारी थे। सं. 1925 में उनके यहाँ संघ की शाखा प्रारम्भ हुई थी। इसी शाखा में बालासाहेब जी ने जाना प्रारम्भ कर दिया था। वैसे तो उनका परिवार मध्यप्रदेश स्थित बालाघाट जिले के आमगांव के ग्राम कारंजा का था।
शिक्षा :-
देवरसजी की सम्पूर्ण शिक्षा नागपुर में ही हुई थी। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा 'न्यू इंग्लिश स्कूल' से प्रारम्भ की थी। संस्कृत तथा दर्शनशास्त्र विषय लेकर देवरसजी ने मौरिस कॉलेज से सं. 1935 में बी. ए. की उपाधि प्राप्त कर दो वर्षों के पश्चात उन्होंने विधि [law] की परीक्षा भी उत्तीर्ण की थी। विधि के स्नातक बनने के पश्चात उन्होंने 'अनाथ विद्यार्थी बस्ती गृह' में दो वर्ष तक अध्यापन कार्य किया। इसी दौरान देवरसजी को नागपुर में नगर कार्यवाहक का दायित्व सौंपा गया था। वहीं सं. 1965 में उन्हें सरकार्यवाहक का दायित्व सौंपा गया था। उन्होंने यह दायित्व आठ वर्षों तक संभाला।
पूजनीय बाला साहेब देवरसजीने 6 जून 1973 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक के सरसंघचालक के दायित्व को ग्रहण किया था। उनके कार्यकाल में संघ कार्य को एक नई दिशा मिली थी। उन्होंने सेवाकार्य पर अधिक बल दिया इसके परिणाम स्वरुप उत्तर पूर्वांचल सहित देश के वनवासी क्षेत्रों के हजारों की संख्या में सेवाकार्य आरम्भ हो गए।
प्रचारक जीवन:-
पूजनीय देवरसजी बचपन से ही संघ के स्वयंसेवक रहे परन्तु उनका वास्तविक प्रचारक जीवन सं. 139 से प्रारम्भ हो गया था। उन्होंने प्रचारक बनते ही सर्वप्रथम संघ कार्य के विस्तार हेतु वे बंगाल चले गए। 21 जून 1940 को डॉ. हेडगेवारजी के निधन के पश्चात उन्हें नागपुर वापस बुला लिया गया था। यहीं से करीब 30-32 वर्षों तक उनकी गतिविधियों का केंद्र नागपुर ही रहा था।
पूजनीय बालासाहेब के मार्गदर्शन से निकले प्रचारकों ने देश के प्रत्येक प्रान्त में पहुँचकर संघ के कार्य को खड़ा किया।उन्होंने ही प्रचारकों की एक बहुत बड़ी फ़ौज तैयार की थी। यहीं नहीं जो प्रचारक देश के अन्य भागों में प्रचार के लिए गए थे, उनके घर की भी पूरी चिंता करने का काम पूजनीय बालासाहेब ने किया था। इसके अतिरिक्त जो भी प्रचारक 10 या 5 वर्षों बाद अपना प्रचारक जीवन पूर्ण कर वापस लौटे उनकी भी हर प्रकार की नौकरी से लेकर व्यवसाय तक की पूरी चिंता उन्होंने की थी।
इन्हीं प्रचारकों में उनके स्वयं के भाई श्री. भाऊराव देवरसजी भी थे। बालासाहेब ने श्री. भाऊरावजी को उत्तर प्रदेश में भेजा था। लखनऊ में रहकर श्री। भाऊरावजी संघ कार्य को गति प्रदान करते हुए एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्यय तथा श्री। अटल बिहारी वाजपईजी जैसे महान लोगों को संघ से जोड़ा है।
25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती. इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कि थी। महज़ पांच दिन पश्चात तीस जून को पूजनीय बालासाहेब जी को गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके आलावा 4 जुलाई 1975 को राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबन्ध थोपा गया था। उनके गिरफ्तार होते ही संघ के कई ज्येष्ठ कार्यकर्ता भूमिगत हो गए थे।
गिरफ़्तारी के दौरान पूजनीय बालासाहेब देवरसजी को पुणे स्थित यरवडा जेल में रखा गया था। संघ ने उनके साथ संपर्क रखना सरल हो, इस कारण मुंबई को अगले नीति निर्धारण का केंद्र बनाया था। इस दौरान देश को चार भागों में बांटकर चार वरिष्ठ प्रचारकों को उनकी जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
इन प्रचारकों में दक्षिण विभाग का दायित्व श्री। यादवराव जोशी को दिया गया था जबकि पश्चिम में श्री। मोरोपंत पिंगले, उत्तर में श्री। राजेंद्र सिंह तथा पूर्व विभाग में श्री। भाऊराव देवरसजी को दिया गया था। वैसे लोक संघर्ष समिति के साथ संपर्क बनाय रखने की अतिरिक्त जिम्मेदारी श्री। मोरोपंतजी को सौंपी गई थी।
श्री. माधवराव मुलेजी पर आंदोलन की प्रमुख जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रदेशों की राजधानियों, ज़िला, तहसील तथा गाँवों तक सन्देश पहुँचाने की व्यवस्था स्थापित की गई थी। येरवडा जेल में रहते हुए पूजनीय बालासाहेबजी को देश में कहाँ क्या हो रहा है, इसकी जानकारी सप्ताह में दो बार दी जाती थी। श्री। रामभाऊ गोडबोलेजी को विरोधी दलों के नेताओं के साथ संपर्क बनाय रखने का कार्य सौंपा गया था। वहीं श्री। एकनाथ रानडेजी को शासकीय अधिकारीयों के साथ चर्चा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
पूजनीय देवरसजी ने विधि स्नातक करने के पश्चात नागपुर स्थित 'अनाथ विद्यार्थी वसतिगृह' में दो वर्षों तक अध्यापन का कार्य भी किया। इसी दौरान उन्हें नागपुर के नगर कार्यवाहक का दाइत्व सौंपा गया था। यहीं से संघ से उनकी निकटता बढती गई और डॉ. हेडगेवार जी की प्रेरणा पाकर उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन संघ के माध्यम से राष्ट्रकार्य में लगाने का निश्चय किया। प्रचारकों की बहुत बड़ी फ़ौज तैयार कर पूरे देश में भेजने का श्रेय भी पूजनीय बालासाहब को ही जाता है।
सं.1948 जब गांधीजी की हत्या हुई थी, इस हत्या का झूठा आरोप लगाकर तत्कालीन सरकार ने संघ पर प्रतिबन्ध लगाया था। इस प्रतिबन्ध के विरुद्ध सत्याग्रह का संचालन और समाज के अनेक प्रतिष्ठित लोगों से संपर्क कर उनके माध्यम से प्रतिबन्ध निरस्त कराने में बालासाहब की प्रमुख भूमिका रही।
उन्होंने ही संघ के संविधान, गणवेश, शारीरिक एवं बौद्धिक कार्यकर्ताओं तथा गणगीत आदि निश्चित कराने में मुख्य भूमिका निभाई थी। सं. 1983 में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम के हिन्दू का इस्लाम में सामूहिक मतांतरण किया गया था। तब इस घटना ने पूरे देश के हिन्दुओं को झगझोर कर रख दिया था। इसका सामना करने हेतु पूजनीय देवरसजी के मार्गदर्शन में देश भर में एकात्मता यात्रा निकाली गई थी। इस यात्रा के माध्यम से देश में एक अभूतपूर्व जनजागरण हुआ था।
पूजनीय देवरसजी प्रथम सरसंघचालक डॉ. हेडगेवारजी के प्रभाव में बारह वर्ष की उम्र में ही आ गए थे, इससे ज्ञात होता है कि वे बचपन से ही संघ से जुड़े थे। कहा जाता है कि 5 जून 1973 को जब द्वितीय सरसंघचालक श्री. गोलवलकरजी के देहावसान के पश्चात सभी स्वयंसेवकों सम्बोधित उनके तीन सीलबंद लिफाफे खोले गए थे। प्रथम लिफाफे में एक पत्र निकला जिसमे श्री. गोलवलकरजी ने इच्छा प्रकट कि थी कि उनके पश्चात पूजनीय देवरसजी को सरसंघचालक बनाया जाय।
ऐसे महान तृतीय सरसंघचालक पूजनीय बाला साहब देवरसजी ने जीवनभर देश सेवा एवं हिन्दू सेवा करते हुए अपनी कर्म स्थली नागपुर में 17 जून 1996 को उनका देहावसान हो गया। ऐसे महान हिन्दू सेवी को शत-शत नमन।
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