कलाकार अजीत |
अपने इतने कठिन संघर्ष के बाद इसी युवक ने मुंबई की मायानगरी में फ़िल्मी दुनिया की बुलंदियों पर अपना परचम लहरा दिया। वह युवक कोई और नहीं " सारा शहर मुझे लायन के नाम से जानता है " यह संवाद बोलनेवाले फ़िल्मी दुनिया के जानेमाने खलनायक कलाकारअजीत है।
प्रारम्भिक जीवन : -
अभिनेता श्री. अजीत का वास्तविक नाम श्री.हामिद अली खान था। उनका जन्म 27 जनवरी 1922 में हैदराबाद स्टेट में ऐतिहासिक गोलकुंडा किले के क्षेत्र में श्री. बशीर अली खान के यहाँ हुआ था। उनकी माता का नाम सुल्तान जेहान बेगम था। श्री. बशीर अली खान हैदराबाद के निज़ाम की सेना में कार्यरत थे। उन्हें चार संताने थी, जिनमे दो लड़के वाहिद अली खान तथा हामिद अली खान। इसके आलावा दो लड़कियाँ थी। श्री. हामिद अली खान छोटे लड़के थे।
"सारा शहर मुझे लायन के नाम से जानता है" के श्री.हामिद अली खान की शिक्षा हैदराबाद से 145 किलोमीटर दुरी पर वारंगल जिले के हनमकोंडा स्थित सरकारी जूनियर कॉलेज में हुई है।
फिल्मों में मुख्य भूमिका:-
फिल्म शाह - ए - मिस्त्र का दृश्य |
श्री. अजीत को सं। 1946 में जी. आर. सेठी के निर्देशन में प्रदर्शित फिल्म "शाह-ए-मिस्त्र" में नायक की मुख्य भूमिका मिली। इस फिल्म में उनके आलावा गीता बोस, अब्दुल, मेघमाला ने मुख्य भूमिका निभाई थी। इस फिल्म में श्री. अजीत की भूमिका को सराहा गया। इसके पश्चात सं.1950 में श्री. एम. आर. नवलकर द्वारा निर्मित "बेकसूर" फिल्म में भी श्री.अजीत को मुख्य भूमिका प्राप्त हुई। इस फिल्म का निर्देशन श्री. के. अमरनाथ ने किया था।
निर्देशक श्री. के. अमरनाथ के कहने पर ही श्री.हामिद अली खान ने अपना फ़िल्मी नाम "अजीत" धारण किया था। फिर इसी नाम से उन्होंने फ़िल्मी दुनिया में सफलता के परचम लहराना आरंभ कर दिया। उन्होंने "नास्तिक" , "बारादरी" , "सरकार" , "मोती महल" , "जिद" , और "सम्राट" , आदि फिल्मों में नायक की भूमिका निभाई थी। उनकी यह विशेषता यह थी की उनकी अधिकतर फिल्मों की नायिका जानीमानी अभिनेत्री नलिनी जयवंत थी।
सं.1957 में बी. आर. चोपड़ा द्वारा निर्मित फिल्म "नया दौर" में श्री. अजीत ने एक ग्रामीण युवक की भूमिका निभाई थी। जबकि यह फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार असली नाम मोहम्मद युसूफ खान पर केंद्रित थी। फिर भी अजीत ने अपने दमदार अभिनय के द्वारा दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित किया था।
श्री. अजीत को "नया दौर" में बड़ी सफलता मिलने के पश्चात उन्होंने तय किया था कि अब वे बड़े बैनर वाली फिल्म में ही अभिनय करेंगे। जबकि सं.1960 में निर्माता, निर्देशक करीमुद्दीन आसिफ [के. आसिफ] द्वारा भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे बड़ी, भव्य और सफल फिल्म "मुग़ल-ए-आजम" में श्री. अजीत को काम मिल गया। परन्तु इस बार भी उनके सामने दिलीप कुमार मुख्य भूमिका में थे। श्री.अजीत को उस फिल्म में सेनापति दुर्जनसिंग की एक छोटी-सी भूमिका स्वीकारनी पड़ी थी। फिर भी उन्होंने लोकप्रियता हासिल की।
नायक से खलनायक:-
1966 में बॉलीवुड की फ़िल्मी दुनिया में धर्मेंद्र बहुत व्यस्त अभिनेता माने जाते थे। इनके आलावा राजेंद्र कुमार, शम्मी कपूर, सुनील दत्त, जॉय मुखर्जी, किशोर कुमार तथा संजय खान भी काफी फिल्मों पर अपना वर्चस्व जमा चुके थे।
फिल्म '' सूरज '' का पोस्टर |
इसी वर्ष अभिनेता राजेंद्र कुमार की सलाह पर श्री.अजीत ने निर्देशक टी. प्रकाश राव द्वारा निर्मित फिल्म " सूरज में खलनायक का किरदार स्वीकार किया। इस फिल्म में नायक की भूमिका में स्वयं राजेंद्र कुमार थे। नायिका वैजयंतीमाला थी। इस तरह श्री.अजीत के नाम के आगे खलनायक का लेबल लग गया।
निर्माता, निर्देशक प्रकाश मेहरा की 1973 में प्रदर्शित फिल्म "जंजीर" , निर्देशक नासिर हुसैन की फिल्म "यादों की बारात" , अर्जुन हिंगोरानी की फिल्म "कहानी किस्मत की" निर्देशक प्रमोद चक्रवर्ती की फिल्म "जुगनू" इसके अतिरिक्त फिल्म "समझौता" से श्री.अजीत के सिने करियर का मुख्य पड़ाव साबित हुआ।
श्री. अर्जुन हिंगोरानी की फिल्म "कहानी किस्मत की" तथा निर्देशक श्री. प्रमोद चक्रवर्ती की फिल्म "जुगनू" यह दोनों फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के कीर्तिमान स्थापित किये है। श्री. अजीत ने अपनी सफलता के द्वारा सिनेमा जगत में बुलंदियों को प्राप्त किया। उन्होंने खलनायिकी में अपनी दमदार आवाज़ एवं अपने बढ़िया अभिनय से दर्शकों के दिलों पर राज किया है।
1976 में निर्देशक श्री. सुभाष घई द्वारा प्रदर्शित फिल्म "कालीचरण" में उन्होंने जो "लायन" का किरदार निभाया था, उस खलनायिकी को कभी भुलाया जा नहीं सकता। "लायन" हमेशा के लिए उनके नाम का पर्याय बन चूका था।
श्री. अजीत की फिल्मों की फेरिस्त में "यादों की बारात" , "आज़ाद" , "जुगनू" , "राम बलराम" , प्रतिज्ञा "तथा" रजिया सुलतान " जैसी दर्जनों फ़िल्में दर्ज है। उन्होंने सं। 1990 में स्वास्थ्य खराब रहने के कारण कुछ समय के लिए फिल्मों से दूरी बना ली थी।
"सारा शहर मुझे लायन के नाम से जानता है" की लोकप्रियता को थामे चार दशक के अपने करियर में 200 फिल्मों में संवाद अदायगी से बेताज बादशाह के शिखर पर विराजित होने का अपना स्वप्न साकार किया था। इस संवाद के आलावा "मोना लूट लो सोना" , "लिली डोंट बी सिली" , "मोना डार्लिंग" तथा "स्मार्ट बॉय" को कैसे भुलाया जा सकता है। श्री.अजीत ने अपने जीवन की यात्रा पूरी करते हुए 22 अक्टूबर 1998 को अपने जन्म स्थान हैदराबाद में इस दुनिया को अलविदा किया। उनकी कमी इस फ़िल्मी दुनिया में हमेशा खलती रहेगी।
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