साहित्यकार माखनलाल चतुर्वेदी |
माखनलाल चतुर्वेदीजी की गणना आज हिंदी साहित्य के ऐतिहासिक उन्नायकों में की जाती है। वे कई वर्षों से मध्यप्रदेश के खंडवा में उस दौर में प्रकाशित होनेवाले '' कर्मवीर '' साप्ताहिक का प्रकाशन करते रहे।
'' कर्मवीर '' साप्ताहिक का जनमत के निर्माण में तथा जनसाधारण के मार्ग - निर्देशन की दिशा में प्रमुख स्थान रहा है। सत्याग्रह आंदोलन के दौरान जिन हिंदी लेखकों और कवियों पर गांधीजी का यथार्थ प्रभाव पड़ा, उनमे माखनलाल चतुर्वेदीजी की गणना की जाती है।
वे अपनी कवितायें '' एक भारतीय आत्मा '' के उपनाम से लिखा करते थे। उनकी कवितायें इतनी लोकप्रिय हुई कि चतुर्वेदीजी राष्ट्रीय जागृति के गायक के रूप में प्रसिद्ध हो गए थे।
माखनलाल चतुर्वेदीजी का काव्य सौंदर्य : -
माखनलाल चतुर्वेदीजी के काव्य में प्रमुख रूप से देश प्रेम की प्रेरणामयी व्यापक भावना रहती है। राष्ट्रीयता का ओजस्वी स्वर, प्रगतिवाद की आत्मा का ओज छायावादी शैली में अभिव्यंजित होता है।
उनकी '' सिपाही '' कविता में देशभक्ति का ऊँचा स्वर पाया जाता है। एक सैनिक के रूप में देश के लिए आत्मोत्सर्ग करने की अभिलाषा व्यक्ति की है -
'' दे हथियार याकि मत दे तू ,
पर तू कर हुंकार।
ज्ञातों को मत , अज्ञातों को,
तू इस बार पुकार।
बोल अरे सेनापति मेरे ,
मन की घुंडी खोल।
जल,थल, नभ,हिल - डुल जाने दे,
तू किंचित मत डोल ।
धीरज, रोग, प्रतिज्ञा चिंता ,
सपने बने तबाही।
कह '' तैयार '' ! द्वार खुलने दे
मै हूँ एक सिपाही। ''
माखनलालजी ने इसी प्रकार अपनी '' प्यारे भारत देश '' कविता में भारत की महिमा का गान किया है। इस कविता में भारत की सांस्कृतिक, राजनैतिक और भौगोलिक पृष्ठभूमि का वर्णन इस प्रकार किया है ----
'' वेदों से बलिदानी तक जो होड़ लगी,
प्रथम प्रभात किरण से हिय में ज्योत लगी।
उतर पड़ी गंगा खेतों खलिहानों तक,
मानो आँसू आये बलि - मेहमानों तक।
सुख कर जग के क्लेश ,
प्यारे भारत देश। ''
माखनलाल चतुर्वेदीजी की कविताओं को तीन श्रेणियों में देखा जाता है ,जैसे राष्ट्रीय कवितायें, प्रेम सम्बन्धी कवितायें और आध्यात्मिक कवितायें।
उनकी '' राष्ट्रीय कवितायें '' ओजपूर्ण होती है। उन कविताओं में उदबोधन की शक्ति होती है। वे अपने राष्ट्र को ऊँचा उठाने की प्रेरणा देती है। माखनलालजी की राष्ट्रीय कविताओं में '' बलिदान '','' सिपाही '', '' मरण त्यौहार '' और '' पुष्प अभिलाषा '' आदि कवितायें शामिल है।
प्रेम परक कविताओं में प्राचीन कविता में मधुरता मिलती है। चतुर्वेदीजी सौन्दर्य प्रिय कवी थे। वे साधारण से साधारण वस्तु में भी सौन्दर्य की अनुभूति करते थे। ह्रदय में प्रेम का प्रबल वेग होने के कारण उनकी प्रेम की कवितायें आकर्षित कर लेती है।
उनकी प्रेम परक कविताओं में '' कुंज कुटीरे '', '' यमुना तीरे '', '' लूंगा दरपन छीन '' विशेष उल्लेखनीय है। माखनलालजी ने अलौकिक प्रेम और मानवता की भावना अभिव्यक्ति करते हुए कहा है ----
'' कौन सी मस्त घड़ियाँ चाह की,
ह्रदय की पगडंडियों की राह की ;
वाह की ऐसी कसक कुन्दन बने ,
मौन की मनुहार की है आह की। ''
माखनलाल चतुर्वेदीजी हिंदी साहित्य के तीन श्रेष्ठ प्रलय गीत गायकों में से एक है , इनके अतिरिक्त पंडित बालकृष्ण शर्मा ' नविन ' और रामधारीसिंह दिनकर है।
राष्ट्र के अनेक बलिदानियों ने इनके गीत गाते - गाते अपने प्राणों की भेंट मातृभूमि को चढ़ाई है। यद्यपि माखनलालजी ने कम लिखा है , लेकिन जो कुछ लिखा है बहुत अच्छा लिखा है। उन्होंने साहित्य में कूड़ा इकट्ठा नहीं किया , बल्कि रत्नों का संचय किया है।
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