बॉलीवुड के बेहतरीन कैमरामैन और उनकी उपलब्धियां
फिल्मों की शूटिंग में प्रयोग होनेवाला उन्नत कैमरा |
भारतीय सिनेमा, जिसे आमतौर पर बॉलीवुड के नाम से जाना जाता है। अपने रंगीन और भव्य प्रस्तुतियों के लिए मशहूर है। इन फिल्मों को जीवंत और आकर्षक बनाने में जितनी भूमिका अभिनेताओं, निर्देशकों और संगीतकारों की होती है, उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका कैमरामैन की होती है।
कैमरामैन, वह शख्स जो कैमरे के पीछे रहकर दृश्य को जादू में बदल देता है, वही सच्चा कला का सृजनकर्ता है। बॉलीवुड में कई दिग्गज कैमरामैन रहे है। जिन्होंने अपने अद्वितीय काम से सिनेमा की दुनिया को नई उंचाईयों तक पहुँचाया है। आईये, जानते है कुछ बेहतरीन कैमरामैन और उनकी प्रमुख उपलब्धियों का बारे में --
1] वी. के. मूर्ति [ प्रथम दादासाहेब फाल्के अवार्ड विजेता ] : -
कैमरामैन वी. के. मूर्ति |
वी. के. मूर्ति बॉलीवुड के सबसे मशहूर और सम्मानित कैमरामैन माने जाते थे। वे प्रसिद्ध निर्देशक गुरुदत्त के साथ अपने काम के लिए खासतौर पर जाने जाते थे। उन्हें गुरुदत्त के सिनेमा की रोशनी भी कहा जाता था। उन्होंने फिल्म " प्यासा ", " कागज़ के फूल " और फिल्म " साहिब बीबी और गुलाम " जैसी क्लासिक फिल्मों के लिए सिनेमैटोग्राफी की है।
फिल्म " प्यासा ", " कागज के फूल " और " साहिब बीबी और गुलाम " का पोस्टर |
वी. के. मूर्ति का पूरा नाम वेंकटरामा पंडित कृष्मूर्ति है। उनका जन्म 26 नवम्बर 1923 को कर्नाटक के मैसूर में हुआ था। उन्होंने अपना फ़िल्मी करियर फिल्म " महाराणा प्रताप "से शुरू किया। 1951 की फिल्म " बाज़ी " के सिनेमेटोग्राफर वी. रात्रा के सहायक बने। उनकी फिल्म " कागज़ के फूल " भारतीय सिनेमा की पहली ' सिनेमास्कोप " फिल्म थी।
पीटर पेरिरा [ ट्रिक फोटोग्राफी के माहिर ]
ट्रिक फोटोग्राफी के माहिर - पीटर पेरिरा |
पीटर पेरिरा एक प्रतिभाशाली कैमरामैन थे, जिन्होंने कई प्रतिष्ठित फिल्मों और डॉक्यूमेंट्रीज पर काम किया है। खासकर, उन्हें फिल्म " मिस्टर इंडिया " [ 1987 ], " बॉर्डर " [1997 ] और " द ट्रैन " [1970 ] जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है।
बॉलीवुड के इन प्रसिद्ध सिनेमेटोग्राफर पीटर पेरिरा बड़े परदे पर स्पेशल इफेक्ट्स के जरिये चौंकाने वाले दृश्य दिखन में माहिर थे। उन्होंने पौराणिक फिल्म के फिल्मकार बाबूभाई मिस्त्री की शागिर्दगी में अपना फिल्म करियर शुरू किया था।
पीटर पेरिरा की लोकप्रिय फिल्म के पोस्टर |
पीटर पेरिरा का काम हमेशा कहानी कहने के तत्वों को प्रार्थमिकता देता है और उनकी दृष्टी ने उन्हें भारतीय सिनेमा में एक विशेष स्थान दिलाया है। उनके हर प्रोजेक्ट में एक गहरी सोंच और कलात्मकता देखने को मिलती है, जो उन्हें एक अनोखा कैमरामैन बनाती है।
उनके कुछ प्रमुख प्रोजेक्ट्स इस तरह है, जैसे -----
1 ] " रंग दे बसंती " इस फिल्म में उनके अद्वितीय दृष्टिकोण ने कहानी की गहराई को और बढ़ा दिया है।
2 ] " जवाब " इस डॉक्यूमेंट्री में उन्होंने सामाजिक मुद्दों को प्रभावशाली तरीके से कैद किया है।
3 ] " द गाजी अटैक " इस फिल्म में उनकी कैमरा तकनीक ने दर्शकों को एक अदभुत अनुभव प्रदान किया है।
4 ] " साहब बीबी और गैंगस्टर " इस फिल्म में उन्होंने काले हुए सफ़ेद रंगों के बीच संतुलन बनाय रखा, जिससे फिल्म की इमोशनल गहराई बढ़ गई।
संतोष सिवन [ 8 फरवरी 1964 ] [ विजुअल जादूगर ]
विजुअल जादूगर संतोष सिवन |
संतोष सिवन भारत के एक विख्यात फिल्मकार, निर्देशक और अभिनेता होने के साथ - साथ एक बेहतरीन सिनेमैटोग्राफर भी है। उन्होंने मुख्यता मलयालम और तमिल में भी उल्लेखनीय काम किया है। संतोष सिवन को कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए 2014 में भारत सरकार ने उन्हें " पद्मश्री " से सम्मानित किया है। वे मूलतः तमिलनाडु राज्य से आते है।
संतोष सिवन एक ऐसे कैमरामैन है, जिन्होंने बॉलीवुड के साथ साथ दक्षिण की फिल्मों में भी अपनी काबलियत का लोहा मनवाया है। उनकी फिल्म " अशोका " जिसमे शाहरुख खान और करीना कपूर मुख्य भूमिका में थे। सीवन के बेहतरीन विज़ुअल्स के लिए आज भी सराहा जाता है। इसके आलावा " दिल से ", " रावण "और " तहलका " जैसी फिल्मों में उनका योगदान बॉलीवुड को आंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा दिलाने वाला है।
फिल्म " रावण " और फिल्म " दिल से "का पोस्टर |
फिल्म " तहलका " का पोस्टर |
फिल्म " अशोका " में शाहरुख़ खान |
अनिल मेहता [ इमोशन को विज़ुअल्स मे ढालने वाले महारथी।
अनिल मेहता फिल्म शूट करते हुए |
अनिल मेहता एक भारतीय छायाकार, फिल्म निर्देशक और लेखक है, जो मुख्य रूप से हिंदी सिनेमा में काम करते है। वे इंडियन सोसाइटी ऑफ सिनेमैटोग्राफी के संस्थापक सदस्यों में एक है। उनका नाम बॉलीवुड की उन फिल्मों के साथ जुड़ा है, जिनकी सिनेमैटोग्राफी दर्शकों को मन्त्रमुग्द्ध कर देती है।
अनिल मेहता ने 1986 में पुणे स्थित फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया में सिनेमैटोग्राफी का प्रशिक्षण प्राप्त किया है। वे जब एक छात्र थे, तब टेलीविजन विज्ञापनों में बरुण मुखर्जी की सहायता कर रहे थे। इसके आलावा उन्होंने 1984 में केतन मेहता के साथ " होली " और 1987 में " मसाला " में काम किया।
अनिल मेहता की फिल्मों के पोस्टर |
फिल्म " लगान ", " कभी अलविदा ना कहना ", " वीर जारा " जैसी फिल्मों में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा है। फिल्म " लगान " के ग्रामीण भारत की वास्तविकता को कैप्चर करने का उनका तरीका और " वीर जारा " की नाजुक प्रेम कहानी को उनके कैमरे के जादू ने और भी खास बना दिया।
रवि के. चंद्रन [ इंटरनेशनल स्टाइल के चैंपियन ]
इंटरनेशनल स्टाइल के छायाकार रवि चंद्रन |
रवि के. चंद्रन एक भारतीय छायाकार और फिल्म निर्देशक है जो मुख्य रूप से हिंदी, मलयालम और तमिल भाषा के सिनेमा में काम करते है। चंद्रन के करियर की शुरुवात 1991 में मलयालम फिल्म " किलुक्कमपेट्टी " से हुई।
रवि चंद्रन इंडियन सोसाइटी ऑफ सिनेमैटोग्राफर्स के संस्थापक सदस्य है और उन्होंने दो फिल्मफेयर पुरस्कार और एक दक्षिणी फिल्मफेयर पुरस्कार जीता है। वे एक ऐसे सिनेमैटोग्राफर है, जिन्होंने " बॉलीवुड " फिल्मों में एक नई तकनिकी उन्नत्ति लायी है। उनकी प्रमुख फिल्मों में " ब्लैक ", " दिल चाहता है " और " अजब प्रेम की गजब कहानी " शामिल है।
रवि के. चंद्रन की फिल्मों के पोस्टर |
फिल्म " ब्लैक " में उनकी सिनेमैटोग्राफी ने फिल्म को एक गहरे और भावनात्मक अनुभव में बदल दिया, जिसके लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले। रवि के. चंद्रन का काम आंतरराष्ट्रीय स्टैण्डर्ड का है और वह फिल्मों में न केवल स्टोरी को बल्कि विजुअल्स को भी महत्त्व देते है।
गोविंद निहलानी [ समानान्तर सिनेमा के क्षेत्र से ]
सिनेमैटोग्राफर गोविन्द निहलानी |
गोविन्द निहलानी एक भारतीय फिल् निर्देशक, छायाकार, पटकथा लेखक और, हिंदी सिनेमा विशेष रूप से समानांतर सिनेमा आंदोलन में अपने लिए जाने जाते है। वह 6 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और 5 फिल्मफेयर पुरस्कार के प्राप्तकर्ता रहे है।
गोविन्द निहलानी की शीर्ष फिल्मों में " अर्धसत्य ", "तमस" और " जूनून " शामिल है।
गोविन्द निहलानी की फिल्मों के पोस्टर |
19 दिसम्बर 1940 को कराची में जन्मे गोविन्द निहलानी, भारत विभाजन के पश्चात भारत आ गए। उन्होंने 1962 में बैंगलोर स्थित श्री जया चमराजेन्द्र पॉलीटेक्निक टेलीविज़न इंस्टिट्यूट से सिनेमैटोग्राफी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
गोविन्द निहलानी ने अपने करियर शुरुवात वी. के. मूर्ति के सहायक छायाकार रूप में की, जिसके बाद उन्होंने छायाकार के रूप में अपना करियर आरम्भ किया।
निहलानी, श्याम बेनेगल की सभी फिल्मों और रिचर्ड एटेनबरो की ऑस्कर विजेता अवधि जीवनी नाटक गांधी की सिनेमैटोग्राफी से भी जुड़े थे।
प्रवीण भट्ट [ हिंदी सिनेमा में विशेष पहचान ]
प्रवीण भट्ट फिल्म छायाकार |
प्रवीण भट्ट एक भारतीय फिल्म छायाकार, निर्देशक और पटकथा लेखक है, जिन्होंने 1970 से 2010 के दशक तक हिंदी सिनेमा में काम किया है और महेश भट्ट द्वारा निर्देशित अधिकांश फिल्मों जैसे " अर्थ "[1982 ] और फिल्म " आशिकी " [1990 ] और बेटे की फिल्मों की शूटिंग की है, जैसे " राज " [2002], " उमरावजान " [1981], " मासूम "[1983 ] जैसी फ़िल्में शूट की है।
प्रवीण भट्ट की फिल्मों के पोस्टर |
प्रवीण भट्ट ने अपने करियर की शुरुवात फिल्म " माँ बाप " [1960 ]में एक कैमरामैन के रूप में की, इसके पश्चात उनके पिता विजय भट्ट द्वारा निर्देशित फिल्म " हरियाली और रास्ता " [1962 ] आयी। जिन्होंने उन्हें अपनी आगामी फीचर फिल्म " हिमालय की गोद में " [1965 ] में एक सिनेमैटोग्राफर के रूप में अवसर प्रदान किया।
सिनेमैटोग्राफर के रूप में अपना करियर स्थापित करते हुए, उन्होंने अपने पिता की कई और फिल्मों में काम किया। भारत की प्रथम होर्रर फिल्म हन्टेड 3 डी के सिनेमैटोग्राफर थे।फिल्म " शापित " [2010 ] ने सिनेमैटोग्राफर के रूप में उनकी 100 वीं फिल्म बनाई।
ये सभी फिल्म निर्माता भारतीय सिनेमा में अपनी रचनात्मक और संवेदनशीलता के लिए जाने जाते है और जाने जाते रहेंगे। उनकी फ़िल्में आज भी दर्शकों के दिलों में बसी हुई है।
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